अध्याय 5
यीशु का जन्म—कहाँ और कब?
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यीशु बेतलेहेम में पैदा होता है
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चरवाहे यीशु को देखने आते हैं
रोमी सम्राट औगुस्तुस ने आदेश दिया कि सब लोग अपना-अपना नाम लिखवाने वहाँ जाएँ जहाँ उनका जन्म हुआ था। अब यूसुफ को अपनी पत्नी के साथ बेतलेहेम जाना होगा, क्योंकि वह वहीं पैदा हुआ था। बेतलेहेम यरूशलेम के दक्षिण में पड़ता है।
इस वक्त बेतलेहेम में जहाँ देखो लोग ही लोग हैं। वे अपना-अपना नाम लिखवाने आए हुए हैं। इसलिए यूसुफ और मरियम को ठहरने के लिए कोई कमरा नहीं मिलता। मजबूरी में उन्हें एक अस्तबल में रुकना पड़ता है जहाँ जानवर रखे जाते हैं। यहीं यीशु पैदा होता है। मरियम उसे कपड़े में लपेटती है और चरनी में रखती है जिसमें जानवरों को चारा दिया जाता है।
यह भविष्यवाणी की गयी थी कि परमेश्वर ने जिस शासक या राजा के आने का वादा किया है, वह बेतलेहेम में पैदा होगा। (मीका 5:2) अगर यूसुफ अपना नाम लिखवाने बेतलेहेम नहीं जाता, तो यीशु वहाँ पैदा नहीं होता। बेतलेहेम यीशु के पुरखे राजा दाविद का नगर था। तो हम कह सकते हैं कि औगुस्तुस ने नाम लिखवाने का जो आदेश दिया, उसके पीछे ज़रूर परमेश्वर का हाथ था।
जिस रात यीशु पैदा होता है, वह सच में एक यादगार रात है। उस इलाके में कुछ चरवाहे रात को भेड़ों की रखवाली कर रहे होते हैं और तभी एक अनोखी घटना घटती है। एक स्वर्गदूत अचानक चरवाहों के सामने आ खड़ा होता है और यहोवा की महिमा का तेज उनके चारों तरफ चमक उठता है। स्वर्गदूत उनसे कहता है, “डरो मत। देखो! मैं तुम्हें एक खुशखबरी सुनाने आया हूँ जिससे सब लोगों को बहुत खुशी मिलेगी। आज दाविद के शहर में तुम्हारे लिए एक उद्धार करनेवाला पैदा हुआ है। वही मसीह प्रभु है। उसे पहचानने की यह निशानी है: तुम एक शिशु को कपड़े की पट्टियों में लिपटा हुआ चरनी में पाओगे।” अचानक और भी कई स्वर्गदूत आ जाते हैं और कहते हैं, “स्वर्ग में परमेश्वर की महिमा हो और धरती पर उन लोगों को शांति मिले जिनसे परमेश्वर खुश है।”—लूका 2:10-14.
फिर स्वर्गदूत चले जाते हैं। तब चरवाहे एक-दूसरे से कहते हैं, “चलो हम बेतलेहेम चलें और जो यहोवा ने हमें बताया है वह देखकर आएँ।” (लूका 2:15) वे बिना देर किए नन्हे यीशु को देखने चल पड़ते हैं। जैसे स्वर्गदूत ने बताया था, वे यीशु को एक चरनी में पाते हैं। चरवाहे लोगों को वे सारी बातें बताते हैं जो स्वर्गदूत ने उनसे कही थीं। लोग हैरान रह जाते हैं। मरियम ये सारी बातें अपने दिल में संजोकर रखती है और इनके मतलब के बारे में गहराई से सोचती है।
आज कई लोग मानते हैं कि यीशु का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था। लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है? दिसंबर में बेतलेहेम में बहुत ठंड पड़ती है और बारिश होती है। कभी-कभी बर्फ भी पड़ती है। इतनी ठंड में चरवाहे भेड़ों को बाहर नहीं ले जाते और सारी रात मैदानों में नहीं रहते। और-तो-और अगर रोमी सम्राट लोगों को आदेश देता कि वे ऐसे मौसम में अपना नाम लिखवाने दूर-दूर तक जाएँ तो वे विद्रोह कर देते, क्योंकि वे पहले ही उससे भड़के हुए थे। इसलिए हम कह सकते हैं कि यीशु दिसंबर में पैदा नहीं हुआ था। उसका जन्म शायद अक्टूबर में हुआ था जब उस इलाके में उतनी ठंड नहीं पड़ती।