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गहरी निराशा इसका इलाज

गहरी निराशा इसका इलाज

गहरी निराशा इसका इलाज

कई सालों से गहरी निराशा की शिकार, रूत कहती है: “मैंने और मेरे पति ने मिलकर पता लगाया कि गहरी निराशा का क्या इलाज है। हमने अपने रहन-सहन में बदलाव किए और ऐसी दिनचर्या बनाने में काफी मेहनत की, जिससे मैं रोज़मर्रा का काम आसानी से कर सकूँ। मैं जो दवाइयाँ ले रही हूँ, उनसे मैं काफी अच्छा महसूस करती हूँ। लेकिन जब कभी दवा काम नहीं करती, तब मेरे पति और दोस्तों का प्यार मुझे हिम्मत देता है।”

रूत का अनुभव दिखाता है कि हताशा के शिकार लोगों को अपने नाते-रिश्‍तेदारों और दोस्तों के सहारे की ज़रूरत पड़ती है। इसके अलावा, उन्हें डॉक्टर की भी सलाह लेनी चाहिए। कुछ मामलों में अगर हताशा का इलाज न किया जाए, तो यह जानलेवा साबित हो सकती है। आज से करीब 2,000 हज़ार साल पहले, यीशु मसीह ने कहा: “वैद्य की ज़रूरत . . . बीमारों को होती है।” (मरकुस 2:17) यह कहकर उसने ज़ाहिर किया कि जिन लोगों ने चिकित्सा-क्षेत्र में तालीम हासिल की होती है, वे बीमारों को ज़रूरी मदद दे सकते हैं। सचमुच, निराशा की गिरफ्त में पड़े लोगों को राहत पहुँचाने में डॉक्टर बहुत कुछ कर सकते हैं। *

कुछ कारगर सलाह

हताशा के कई इलाज मौजूद हैं। ये इलाज, बीमारी के लक्षण पर और वह कितनी गंभीर है, इस पर निर्भर करते हैं। (पेज 5 पर दिया बक्स, “अलग-अलग किस्म की गहरी निराशा” देखिए।) हताशा के शिकार कई लोगों को अपने परिवार के डॉक्टर से मदद मिल सकती है। लेकिन कुछ को खास किस्म के इलाज की ज़रूरत होती है। डॉक्टर शायद मरीज़ को एंटीडिप्रेसेंट (आराम पहुँचानेवाली) दवाइयाँ या दूसरे किस्म के इलाज की सलाह दें। कुछ लोगों ने पाया है कि जड़ी-बूटी लेने, खान-पान में फेरबदल करने या डॉक्टर के बताए मुताबिक कसरत करने से अच्छे नतीजे मिलते हैं।

आम समस्याएँ

1. आपका भला चाहनेवाले दोस्त। उन्हें शायद चिकित्सा के बारे में थोड़ा या बिलकुल भी ज्ञान न हो, फिर भी वे आपसे कह सकते हैं कि इलाज का कौन-सा तरीका कबूल करना चाहिए और कौन-सा नहीं। वे आप पर अपनी राय थोपने की कोशिश भी कर सकते हैं कि आपके लिए जड़ी-बूटी लेना बेहतर होगा, या डॉक्टर की लिखी दवाइयाँ, या फिर कुछ भी नहीं।

गौर कीजिए: कोई भी सलाह मानने से पहले पक्का कीजिए कि सलाह देनेवाले पर भरोसा किया जा सकता है या नहीं। याद रखिए, आखिरी फैसला आप ही को सोच-समझकर लेना है।

2. हौसले पस्त होना। कुछ मरीज़ों को जब दवाइयों का कोई असर नज़र नहीं आता या बुरे साइड इफेक्ट्‌स होते हैं, तो उनके हौसले पस्त हो सकते हैं और वे अपना इलाज बंद कर सकते हैं।

गौर कीजिए: “बिना सलाह के, योजनाएं निष्फल हो जाती हैं, परन्तु अनेक सलाहकारों की सलाहों से वे सफल हो जाती हैं।” (नीतिवचन 15:22, NHT) इलाज का बढ़िया नतीजा तभी निकल सकता है, जब मरीज़ और डॉक्टर के बीच अच्छी बातचीत हो। अपने डॉक्टर को अपनी चिंताएँ और बीमारी के लक्षण खुलकर बताइए। उससे पूछिए कि कहीं आपको इलाज में कुछ फेरबदल करने की ज़रूरत तो नहीं, या फिर आपको दवाइयाँ लेते रहना चाहिए क्योंकि उनका असर देर से होगा।

3. खुद पर ज़्यादा भरोसा होना। जब कुछ मरीज़ पहले से अच्छा महसूस करने लगते हैं, तब वे शायद अपनी दवाइयाँ बीच में ही बंद कर दें। हो सकता है वे यह भूल जाएँ कि इलाज शुरू करने से पहले उन्हें कितनी कमज़ोरी महसूस होती थी।

गौर कीजिए: डॉक्टर से बिना पूछे अचानक दवाइयाँ बंद करने के बुरे अंजाम हो सकते हैं। यहाँ तक कि आपकी जान खतरे में पड़ सकती है।

हालाँकि बाइबल चिकित्सा की किताब नहीं है, फिर भी इसका रचनाकार यहोवा परमेश्‍वर हमारा सृष्टिकर्ता है। उसने अपने वचन के ज़रिए गहरी निराशा के मरीज़ों और उनकी देखभाल करनेवालों को दिलासा और मार्गदर्शन दिया है। अगला लेख इसी बारे में चर्चा करेगा। (g 7/09)

[फुटनोट]

^ सजग होइए! यह सिफारिश नहीं करती कि इलाज के लिए कौन-सा तरीका बेहतर होगा। इसके बजाय हरेक व्यक्‍ति को कोई भी फैसला लेने से पहले इलाज के तरीकों के बारे में खुद जाँच-परख करनी चाहिए।

[पेज 5 पर बक्स]

अलग-अलग किस्म की गहरी निराशा

कौन-सा इलाज कितना असरदार होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज़ को किस किस्म की गहरी निराशा है।

मेजर डिप्रेशन का अगर इलाज न किया जाए, तो इसके लक्षण इतने गंभीर हो सकते हैं कि वे 6 महीने या उससे ज़्यादा समय तक रहें। और इनका बुरा असर मरीज़ की ज़िंदगी के लगभग हर दायरे पर पड़ सकता है।

बायपोलर डिसऑर्डर का दूसरा नाम है, ‘मेनिक डिप्रेशन।’ इससे पीड़ित लोगों पर लंबे समय तक या तो किसी काम को पूरे जोश के साथ करने की सनक सवार रहती है, या फिर वे गहरी निराशा में डूबे रहते हैं।—1 दिसंबर, 2000 की प्रहरीदुर्ग का यह लेख देखिए: “तुम नहीं जानते कि कल तुम्हारे जीवन का क्या होगा।”

डिस्थाइमिया में उतनी निराशा महसूस नहीं होती, जितनी ‘मेजर डिप्रेशन’ में होती है। फिर भी, डिस्थाइमिया का मरीज़ हर दिन के कामकाज ठीक से नहीं कर पाता। कुछ लोगों को तो समय-समय पर ‘मेजर डिप्रेशन’ भी होता है।

पोस्टपार्टम डिप्रेशन एक ऐसी मानसिक हालत है, जो कई माँओं को बच्चे के जन्म के बाद आ घेरती है। इसमें उन्हें कमज़ोरी भी आती है।—इस पत्रिका के जुलाई-सितंबर 2002 के अंक में लेख, “मेरी गोद भरने से पहले ही सूनी हो गयी” देखिए।

सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर तब होता है, जब पतझड़ और ठंड के मौसम में सूरज पूरा नहीं निकलता। इस डिसऑर्डर के मरीज़ आम तौर पर वसंत और गर्मी के मौसम में अच्छा महसूस करते हैं।