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आम शिकायतें और उन्हें दूर करने के सुझाव

आम शिकायतें और उन्हें दूर करने के सुझाव

आम शिकायतें और उन्हें दूर करने के सुझाव

बाइबल यह दावा नहीं करती कि शादीशुदा ज़िंदगी फूलों की सेज होगी। परमेश्‍वर की प्रेरणा से प्रेषित पौलुस ने लिखा कि शादीशुदा जोड़ों को “हर दिन दुःख-तकलीफें” झेलनी पड़ेंगी। (1 कुरिंथियों 7:28, टूडेज़ इंग्लिश वर्शन) लेकिन शादीशुदा जोड़े न सिर्फ अपनी तकलीफों को कम करने बल्कि एक-दूसरे की खुशी बढ़ाने के लिए काफी कुछ कर सकते हैं। आइए उन छः शिकायतों पर गौर करें जो अकसर पति-पत्नी करते हैं और देखें कि बाइबल सिद्धांतों को लागू करने से कैसे मदद मिल सकती है।

1

शिकायत:

“हम दोनों एक-दूसरे से दूर होते जा रहे हैं।”

बाइबल सिद्धांत:

“पहचानों . . . कि ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातें क्या हैं।”फिलिप्पियों 1:10.

एक शादीशुदा इंसान की ज़िंदगी में उसकी शादी की सबसे ज़्यादा अहमियत होनी चाहिए। इस पर पूरा-पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। इसलिए जाँचिए कि आपकी शिकायत की वजह कहीं आपके रोज़मर्रा के काम तो नहीं। इस कारण से पति-पत्नी के बीच दूरी नहीं आनी चाहिए। हो सकता है, आपकी नौकरी या दूसरे ज़रूरी काम कुछ समय के लिए आपको अपने साथी से दूर कर दें। लेकिन जिन बातों पर आपका बस है उन पर आप काबू कर सकते हैं और ऐसा करना भी चाहिए, जैसे आप ध्यान दे सकते हैं कि अपने शौक पूरे करने में या दोस्तों के साथ आप कितना वक्‍त बिताते हैं।

कुछ जोड़े सिर्फ इसलिए अपनी नौकरी पर या फिर शौक पूरे करने में ज़्यादा वक्‍त बिताते हैं ताकि उन्हें अपने साथी के साथ कम समय बिताना पड़े। ऐसा नहीं है कि ये जोड़े अनजाने में “एक-दूसरे से दूर” हो रहे हैं बल्कि वे जानबूझकर अपने बीच खाई खोद रहे हैं। अगर आपकी शादीशुदा ज़िंदगी में ऐसा हो रहा है तो जानने की कोशिश कीजिए कि इसकी क्या वजह है और फिर उस वजह को दूर कीजिए। जब तक कि आप दोनों एक-साथ समय नहीं बिताएँगे आप एक-दूसरे के करीब नहीं आ पाएँगे और पूरी तरह से ‘एक तन’ नहीं बन पाएँगे।—उत्पत्ति 2:24.

कुछ लोगों ने कैसे इस सलाह को लागू किया: ऑस्ट्रेलिया के एक जोड़े, एन्ड्रू * और तांजी की शादी को दस साल हो चुके हैं। एन्ड्रू कहता है: “मैंने देखा है कि बहुत ज़्यादा काम करना और लोगों के साथ ज़्यादा वक्‍त बिताना शादीशुदा ज़िंदगी के लिए खतरनाक हो सकता है। इसलिए मैं और मेरी पत्नी एक-दूसरे से बात करने के लिए वक्‍त निकालते हैं और अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करते हैं।”

अमरीका में रहनेवाले डेव और जेन की शादी को 22 साल हो गए हैं। रोज़ शाम को जब वे मिलते हैं तो सबसे पहले, आधे घंटे के लिए एक-दूसरे को अपने अनुभव और दिल की बात बताते हैं। जेन कहती है: “यह वक्‍त हमारे लिए बहुत अनमोल है और हम किसी भी चीज़ को इसमें आड़े नहीं आने देते।”

2

शिकायत:

“मुझे अपने इस रिश्‍ते से जो चाहिए वह अब नहीं मिल रहा है।”

बाइबल सिद्धांत:

“हर कोई अपना ही फायदा न सोचे, बल्कि उन बातों की खोज में लगा रहे जिनसे दूसरों का फायदा हो।”1 कुरिंथियों 10:24.

एक इंसान जो सिर्फ इस बारे में सोचता है कि उसे अपने रिश्‍ते से क्या मिल रहा है और क्या नहीं, वह कभी खुश नहीं रह सकता फिर चाहे वह कितनी ही बार शादी क्यों न कर ले। जब दोनों एक-दूसरे की ज़रूरत पूरी करने पर ध्यान देंगे तभी शादी कामयाब होगी। यीशु ने इस सच्चाई को यूँ बताया: “लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।”—प्रेषितों 20:35.

कुछ लोगों ने कैसे इस सलाह को लागू किया: मारिया और मार्टिन मेक्सिको में रहते हैं और उनकी शादी को 39 साल हो चुके हैं। लेकिन उनकी शादीशुदा ज़िंदगी हमेशा आसान नहीं रही। उन्हें अपना एक कड़वा अनुभव याद है। मारिया कहती है: “एक बार हममें गरमा-गरम बहस छिड़ गयी। और मैंने मार्टिन को कुछ ऐसा कह दिया जिससे उसके अहम को ठेस पहुँची। वह गुस्से में तिलमिला उठा। मैंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की कि गुस्से में मेरे मुँह से वह बात निकल गयी, मैं तुम्हें नीचा नहीं दिखाना चाहती थी। लेकिन उसने मेरी एक न सुनी।” मार्टिन कहता है: “उस बहस के दौरान मैं सोचने लगा कि अब हम साथ नहीं रह सकते और इस रिश्‍ते को सुधारने की कोशिश करना बेकार है।”

मार्टिन चाहता था कि मारिया उसे इज़्ज़त दे। और मारिया चाहती थी कि मार्टिन उसे समझे। दोनों जो चाहते थे, वह उन्हें नहीं मिल रहा था।

उन्होंने इस समस्या को कैसे सुलझाया? मार्टिन कहता है: “मैंने ठंडे दिमाग से इस बारे में सोचा। फिर हम दोनों ने फैसला किया कि हम एक-दूसरे को आदर दिखाने और प्यार से पेश आने के बारे में बाइबल की बुद्धि-भरी सलाह को मानेंगे। सालों गुज़र गए और हमने सीखा है कि हमारे सामने चाहे कितनी ही समस्याएँ क्यों न खड़ी हो जाएँ, अगर हम यहोवा से प्रार्थना करें और बाइबल में दी गयी सलाहों को लागू करें तो हम उन्हें ज़रूर सुलझा सकेंगे।”—यशायाह 48:17, 18; इफिसियों 4:31, 32.

3

शिकायत:

“मेरा साथी अपनी ज़िम्मेदारियों को अच्छी तरह नहीं निभाता।”

बाइबल सिद्धांत:

“हम में से हरेक इंसान परमेश्‍वर को अपना-अपना हिसाब देगा।”रोमियों 14:12.

इसमें शक नहीं कि अगर दोनों में से सिर्फ एक ही गृहस्थी की गाड़ी चलाने की कोशिश करे तो कामयाबी नहीं मिलेगी। लेकिन बात तब और भी बिगड़ जाएगी जब दोनों लापरवाह हो जाएँगे और एक-दूसरे पर दोष लगाने लगेंगे।

अगर आप सिर्फ इस बात पर ध्यान दें कि आपके साथी को क्या-क्या करना चाहिए तो बेशक आपका जीना दुश्‍वार हो जाएगा। आपकी मुश्‍किल तब और भी बढ़ जाएगी, जब आप यह सोचकर अपनी ज़िम्मेदारियों से कन्‍नी काटेंगे कि आपका साथी भी तो अपनी ज़िम्मेदारियों को नहीं निभा रहा। दूसरी तरफ, अगर आप एक अच्छा पति या अच्छी पत्नी साबित होने की कोशिश करें तो आपकी शादीशुदा ज़िंदगी काफी हद तक बेहतर बन सकती है। (1 पतरस 3:1-3) इससे भी बढ़कर आप दिखा रहे होंगे कि आप शादी के इंतज़ाम की कदर करते हैं और इस तरह आपके कामों से परमेश्‍वर को भी खुशी होगी।—1 पतरस 2:19.

कुछ लोगों ने कैसे इस सलाह को लागू किया: कोरिया में रहनेवाली किम की शादी को 38 साल हो चुके हैं। वह कहती है: “कभी-कभी मेरे पति मुझसे नाराज़ हो जाते हैं और बात करना बंद कर देते हैं और मुझे पता तक नहीं होता कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं। और उनके ऐसे व्यवहार से मुझे लगता है कि अब वे मुझे पहले की तरह प्यार नहीं करते। कई बार मैं सोचती हूँ कि वे क्यों उम्मीद करते हैं कि ‘मैं उनके दिल की बात समझूँ, जबकि वे मुझे कभी समझने की कोशिश नहीं करते?’”

किम चाहती तो वह भी अपने पति की इस हरकत पर मुँह फुलाकर बैठ सकती थी। लेकिन उसने ऐसा न करके दूसरा तरीका अपनाया। किम कहती है: “नाराज़गी पाले रहने के बजाय मैंने सीखा है शादी को कामयाब बनाने के लिए यही अच्छा है कि मैं खुद जाकर अपने पति से बात करूँ। इस तरह आखिरकार हम दोनों का गुस्सा ठंडा हो जाता है और हम मामले पर शांति से बात कर पाते हैं।”—याकूब 3:18.

4

शिकायत:

“मेरी पत्नी मेरा कहना नहीं मानती।”

बाइबल सिद्धांत:

“पुरुष का सिर मसीह है।”1 कुरिंथियों 11:3.

जो पति सोचते हैं कि उनकी पत्नी उनका कहना नहीं मानती, उन्हें पहले यह सोचना चाहिए कि क्या वे अपने अगुवे यीशु मसीह का कहना मानते हैं। यीशु के उदाहरण पर चलकर पति दिखा सकते हैं कि वे भी अपने मुखिया के अधीन हैं।

प्रेषित पौलुस ने लिखा: “हे पतियो, अपनी-अपनी पत्नी से प्यार करते रहो, ठीक जैसे मसीह ने भी मंडली से प्यार किया और अपने आपको उसकी खातिर दे दिया।” (इफिसियों 5:25) यीशु ने अपने चेलों पर “हुक्म” नहीं चलाया। (मरकुस 10:42-44) उसने अपने चेलों को साफ-साफ निर्देशन दिए और ज़रूरत पड़ने पर उन्हें सुधारा भी। लेकिन वह उनके साथ कभी रुखाई से पेश नहीं आया बल्कि उसने हमेशा प्यार दिखाया और उनकी सीमाओं को समझा। (मत्ती 11:29, 30; मरकुस 6:30, 31; 14:37, 38) उसने उनकी ज़रूरतों को अपनी ज़रूरत से ज़्यादा अहमियत दी।—मत्ती 20:25-28.

एक पति को खुद से यह सवाल पूछना चाहिए: ‘मुखियापन और स्त्रियों के साथ व्यवहार करने के बारे में क्या मैं बाइबल की सलाहों और मिसालों से ज़्यादा, समाज की रीतियों और उनके बनाए नियमों को मानता हूँ?’ उदाहरण के लिए, आप ऐसी स्त्री के बारे में क्या सोचेंगे जो किसी मामले पर अपने पति की राय से सहमत नहीं होती और दृढ़ता से मगर इज़्ज़त के साथ अपनी राय बताती है? बाइबल में अधीन रहने के बारे में अब्राहम की पत्नी सारा की मिसाल दी जाती है। (1 पतरस 3:1, 6) लेकिन ज़रूरत पड़ने पर उसने खुलकर अपनी राय पेश की, खासकर जब अब्राहम उस खतरे को नहीं समझ पाया, जिससे उसका परिवार मुसीबत में पड़ सकता था।—उत्पत्ति 16:5; 21:9-12.

ज़ाहिर है कि अब्राहम ने सारा को डरा-धमकाकर नहीं रखा था कि वह कभी किसी मामले पर अपनी राय नहीं दे सकती। वह कोई तानाशाह नहीं था। उसी तरह बाइबल की सलाह माननेवाले पति अपनी पत्नी पर धौंस जमाते हुए यह माँग नहीं करेंगे कि उन्हें अपने पति की हर छोटी-से-छोटी बात माननी चाहिए। अगर वे प्यार से अपने मुखियापन की ज़िम्मेदारी को निभाएँगे तो उनकी पत्नियाँ खुद-ब-खुद उनकी इज़्ज़त करेंगी।

कुछ लोगों ने कैसे इस सलाह को लागू किया: इंग्लैंड में रहनेवाले जैम्स की शादी को 8 साल हो गए हैं। वह कहता है: “मैं सीख रहा हूँ कि अपनी पत्नी से बिना सलाह-मशविरा किए मैं कोई ज़रूरी फैसला न करूँ। मैं कोशिश करता हूँ कि मैं सिर्फ अपने बारे में न सोचूँ। इसके बजाय मैं ध्यान रखता हूँ कि मैं अपनी पत्नी की ज़रूरत का खयाल पहले रखूँ।”

जॉर्ज अमरीका में रहता है और उसकी शादी को 59 साल हो चुके हैं। वह कहता है: “मैंने कोशिश की कि मैं अपनी पत्नी को कभी खुद से कम न समझूँ, बल्कि उसे एक समझदार और काबिल साथी मानूँ।”—नीतिवचन 31:10.

5

शिकायत:

“मेरे पति कभी पहल नहीं करते।”

बाइबल सिद्धांत:

“हर बुद्धिमान स्त्री अपने घर को बनाती है, पर मूढ़ स्त्री उसको अपने ही हाथों से ढा देती है।”नीतिवचन 14:1.

अगर आपके पति फैसले लेने में झिझकते हैं या घर की ज़िम्मेदारी उठाने में पहल नहीं करते तो आपके सामने तीन रास्ते हैं। (1) आप हमेशा उसे उसकी कमियों का एहसास दिला सकती हैं या (2) आप खुद ही पति की भूमिका निभाने लग सकती हैं या फिर (3) वह ज़िम्मेदारी उठाने में जो भी थोड़ी-बहुत मेहनत करता है आप उसकी दिल से कदर कर सकती हैं। अगर आप पहले दो रास्ते चुनेंगी तो आप खुद अपना घर बरबाद कर रही होंगी। लेकिन तीसरा रास्ता चुनने से आपको अपनी शादी का बंधन मज़बूत करने में मदद मिलेगी।

बहुत-से पुरुष प्यार से ज़्यादा इज़्ज़त पाने की चाहत रखते हैं। तो इसे ध्यान में रखते हुए आप उसे महसूस कराइए कि आप उसके कामों की कदर करती हैं, जिनसे परिवार को फायदा होता है। इस तरह उसे लगेगा कि आपकी नज़र में उसकी इज़्ज़त है। और नतीजा यह होगा कि वह अपने मुखियापन की ज़िम्मेदारी को और भी अच्छी तरह निभाने लगेगा। कभी-कभी हो सकता है कि आप किसी मामले पर उसकी राय से सहमत न हों। ऐसे में आप दोनों बैठकर चर्चा कर सकते हैं। (नीतिवचन 18:13) लेकिन इस दौरान आपको अपने शब्दों और लहज़े पर ध्यान देना चाहिए वरना इससे आपकी गृहस्थी में आग लग सकती है। (नीतिवचन 21:9; 27:15) अगर आप उसे इज़्ज़त देते हुए बात करेंगी तो आप जो चाहती हैं, वह हो पाएगा यानी आपका पति परिवार में खुशी-खुशी अगुवाई लेने लगेगा।

कुछ लोगों ने कैसे इस सलाह को लागू किया: मिशेल अमरीका में रहती है और उसकी शादी को 30 साल हो चुके हैं। उसका कहना है: “मेरी माँ ने अकेले ही मेरी और मेरी दो छोटी बहनों की परवरिश की। इसलिए वह काफी हिम्मतवाली थी और अपने फैसले खुद लेती थी। मेरा स्वभाव भी उनकी तरह हो गया था। इसलिए मेरे लिए अपने पति के अधीन रहना बहुत मुश्‍किल था। उदाहरण के लिए, मुझे सीखना पड़ा कि कोई भी फैसला लेने से पहले मैं अपने पति से सलाह-मशविरा करूँ।”

रेचल ऑस्ट्रेलिया में रहती है और उसे मार्क से शादी किए 21 साल हो गए हैं। उस पर भी अपने परिवार का बहुत असर हुआ। वह याद करती है: “मेरी माँ कभी मेरे पिता का कहना नहीं मानती थी। बहस करना और उनकी बेइज़्ज़ती करना रोज़ की बात थी। शादी के शुरूआती सालों में माँ की तरह मैं भी अपने पति को ज़रा भी इज़्ज़त नहीं देती थी। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, मैंने जाना कि पति की इज़्ज़त करने की बाइबल की सलाह कितनी अनमोल है। अब मैं और मार्क अपनी शादीशुदा ज़िंदगी से ज़्यादा खुश हैं।”

6

शिकायत:

“मैं अपने पति की चिढ़ दिलानेवाली आदतों को और बरदाश्‍त नहीं कर सकती।”

बाइबल सिद्धांत:

“किसी के पास दूसरे के खिलाफ शिकायत की कोई वजह है, तो एक-दूसरे की सहते रहो और एक-दूसरे को दिल खोलकर माफ करो।”कुलुस्सियों 3:13.

शादी से पहले जब आपने एक-दूसरे को जानने के लिए वक्‍त बिताया होगा तब शायद आपने अपने होनेवाले जीवन-साथी के अच्छे गुणों पर ध्यान दिया होगा और उसकी बुराइयों को नज़रअंदाज़ कर दिया होगा। क्या अब भी ऐसा करना मुमकिन है? हो सकता है अपने साथी के खिलाफ आपकी शिकायत जायज़ हो। फिर भी खुद से पूछिए, ‘मेरे लिए अपने जीवन-साथी की खूबियों पर ध्यान देना अच्छा होगा या उसकी खामियों पर?’

यीशु ने एक ज़बरदस्त मिसाल का इस्तेमाल किया जिससे हमें पता चलता है कि हमें दूसरों की खामियों को नज़रअंदाज़ कर देना चाहिए। “तू क्यों अपने भाई की आँख में पड़े तिनके को देखता है, मगर अपनी आँख में पड़े लट्ठे के बारे में नहीं सोचता?” (मत्ती 7:3) तिनका घास का एक छोटा टुकड़ा भी हो सकता है। लेकिन लट्ठा इतना मोटा होता है कि उस पर घर की छत टिकायी जाती है। उसके कहने का क्या मतलब था? “पहले अपनी आँख से लट्ठा निकाल, तब तू साफ-साफ देख सकेगा कि अपने भाई की आँख से तिनका कैसे निकालना है।”—मत्ती 7:5.

यीशु ने इस मिसाल के ज़रिए एक गंभीर चेतावनी दी। उसने कहा: “दोष लगाना बंद करो ताकि तुम पर दोष न लगाया जाए। इसलिए कि जैसे तुम दोष लगाते हो, वैसे ही तुम पर भी दोष लगाया जाएगा।” (मत्ती 7:1, 2) अगर आप चाहते हैं कि परमेश्‍वर आपकी कमियों यानी आपकी आँख के लट्ठे को नज़रअंदाज़ करे, तो अच्छा होगा कि आप भी अपने साथी की खामियों को अनदेखा करें।—मत्ती 6:14, 15.

कुछ लोगों ने कैसे इस सलाह को लागू किया: इंग्लैंड में रहनेवाली जैनी और साइमन की शादी को 9 साल हो गए हैं। वह कहती है: “साइमन हर काम ऐन मौके पर करता है और उसकी इस आदत से मुझे बेहद चिढ़ है। लेकिन मुझे इस बात पर हैरानी होती है क्योंकि शादी से पहले जब हम मिलते थे तब मैं साइमन के इसी स्वभाव पर फिदा थी कि वह कैसे हर काम फटाक से कर लेता है। मगर मैं जानती हूँ कि मेरे अंदर भी कमियाँ हैं मसलन मैं साइमन पर कुछ ज़्यादा ही हक चलाती हूँ। साइमन और मैं दोनों ही एक-दूसरे की छोटी-छोटी गलतियों को नज़रअंदाज़ करना सीख रहे हैं।”

मिशेल जिसका पहले भी ज़िक्र हुआ है, उसके पति कुर्ट का कहना है: “आप अपने जीवन-साथी की चिढ़ दिलानेवाली आदतों के बारे में जितना ज़्यादा सोचेंगे, उतनी ही ज़्यादा वे आपको अखरेंगी। मैं मिशेल की उन खूबियों पर ध्यान देना पसंद करता हूँ जिनकी वजह से मैं उससे प्यार करने लगा था।”

कामयाबी का राज़

इन उदाहरणों से हमने सीखा कि शादी में चुनौतियाँ आना तो लाज़िमी है, मगर ऐसा नहीं कि उन्हें पार नहीं किया जा सकता। शादी को कामयाब बनाने का राज़ क्या है? परमेश्‍वर के लिए प्यार पैदा कीजिए और उसके वचन बाइबल में दी गयी सलाहों को लागू करने को तैयार रहिए।

नाइजीरिया के रहनेवाले एलिक्स और इटोहन की शादी को बीस साल हो चुके हैं। उन्होंने कामयाबी का राज़ जान लिया है। एलिक्स कहता है: “मैंने सीखा है कि शादीशुदा ज़िंदगी में आनेवाली हर समस्या सुलझायी जा सकती है बशर्ते पति-पत्नी दोनों बाइबल सिद्धांत लागू करें।” उसकी पत्नी कहती है: “हमने नियमित तौर पर एक-साथ प्रार्थना करने की अहमियत को समझा, साथ ही एक-दूसरे को दिल-से प्यार करने और धीरज दिखाने की बाइबल की सलाह को भी लागू करना सीखा। अब हम उतनी परेशानियों का सामना नहीं करते जितनी कि पहले किया करते थे।”

क्या आप इस बारे में और सीखना चाहते हैं कि परमेश्‍वर के वचन में पायी गयी कारगर सलाह से कैसे आपके परिवार को फायदा हो सकता है? अगर हाँ, तो आप यहोवा के साक्षियों से कह सकते हैं कि वे आपके साथ बाइबल असल में क्या सिखाती है? किताब के 14वें अध्याय पर चर्चा करें। * (w11-E 02/01)

[फुटनोट]

^ कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

^ इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

[पेज 4 पर तसवीर]

क्या हम एक-दूसरे के लिए वक्‍त निकालते हैं?

[पेज 5 पर तसवीर]

क्या मैं लेने से ज़्यादा देने की कोशिश करता हूँ?

[पेज 6 पर तसवीर]

क्या मैं झगड़े को सुलझाने में पहल करती हूँ?

[पेज 7 पर तसवीर]

कोई भी फैसला लेने से पहले क्या मैं अपनी पत्नी की राय लेता हूँ?

[पेज 9 पर तसवीर]

क्या मैं अपने साथी की खूबियों पर ध्यान देती हूँ?