इब्रानियों के नाम चिट्ठी 12:1-29

12  इसलिए जब गवाहों का ऐसा घना बादल हमें घेरे हुए है, तो आओ हम हरेक बोझ को और उस पाप को जो आसानी से हमें उलझा सकता है, उतार फेंकें+ और उस दौड़ में जिसमें हमें दौड़ना है धीरज से दौड़ते रहें+  और यीशु पर नज़र टिकाए रहें जो हमारे विश्‍वास का खास अगुवा और इसे परिपूर्ण करनेवाला है।+ उसने उस खुशी के लिए जो उसके सामने थी, यातना के काठ* पर मौत सह ली और शर्मिंदगी की ज़रा भी परवाह नहीं की और अब वह परमेश्‍वर की राजगद्दी के दायीं तरफ बैठा है।+  हाँ, उस पर अच्छी तरह ध्यान दो जिसने पापियों के मुँह से ऐसी बुरी-बुरी बातें सहीं+ जिनसे वे खुद ही दोषी ठहरे ताकि तुम थककर हार न मानो।+  पाप से लड़ने में तुमने अब तक इतना संघर्ष नहीं किया कि तुम्हारा खून बहे।  मगर तुम इस नसीहत को, जिसमें तुम्हें बेटे पुकारा गया है, पूरी तरह से भूल गए हो: “मेरे बेटे, यहोवा* की शिक्षा को हलकी बात न समझ और जब वह तुझे सुधारे, तो हिम्मत मत हार  क्योंकि यहोवा* जिससे प्यार करता है उसे सुधारता भी है। दरअसल वह जिसे अपना बेटा मानकर अपनाता है उसे कोड़े भी लगाता है।”*+  तुम इसे यह समझकर सह लो कि तुम्हें सुधारा जा रहा है।* परमेश्‍वर तुम्हें अपने बेटे मानकर तुम्हारे साथ ऐसे पेश आ रहा है,+ क्योंकि ऐसा कौन-सा बेटा है जिसे पिता नहीं सुधारता?+  लेकिन अगर तुम सबको इस तरह सुधारा न जाए, तो तुम असल में बेटे नहीं नाजायज़ औलाद हो।  यही नहीं, हमारे पिता भी हमें सुधारा करते थे और हम उनका आदर करते थे। तो क्या हमें उस पिता के, जिसने हमें पवित्र शक्‍ति से जीवन दिया है, और भी ज़्यादा अधीन नहीं रहना चाहिए ताकि हम जीते रहें?+ 10  हमारे पिताओं ने तो जैसा उन्हें ठीक लगा वैसे हमें सुधारा और वह भी कुछ समय के लिए। लेकिन परमेश्‍वर हमारे फायदे के लिए हमें सुधारता है ताकि हम उसकी तरह पवित्र बनें।+ 11  यह सच है कि जब भी किसी को सुधारा जाता है तो उस वक्‍त उसे खुशी नहीं होती बल्कि बहुत दुख* होता है, मगर जो इस तरह का प्रशिक्षण पाते हैं उनके लिए इससे शांति और नेकी पैदा होती है। 12  इसलिए ढीले हाथों और कमज़ोर घुटनों को मज़बूत करो।+ 13  और अपने कदमों के लिए सीधा रास्ता बनाते रहो+ ताकि जो पैर कमज़ोर है वह जोड़ से उखड़ न जाए बल्कि स्वस्थ हो जाए। 14  सब लोगों के साथ शांति बनाए रखने+ और पवित्र बने रहने की कोशिश करते रहो+ जिसके बिना कोई भी इंसान प्रभु को नहीं देखेगा। 15  इस बात का खास ध्यान रखो कि तुममें से कोई भी परमेश्‍वर की महा-कृपा पाने से चूक न जाए ताकि तुम्हारे बीच कोई ज़हरीली जड़ न पैदा हो जो मुसीबत खड़ी करे और बहुत-से लोग उससे दूषित हो जाएँ।+ 16  और यह भी ध्यान रखो कि तुममें ऐसा कोई न हो जो नाजायज़ यौन-संबंध* रखता हो, न ही कोई एसाव जैसा हो जिसने पवित्र चीज़ों की कदर नहीं की और एक वक्‍त के खाने के बदले पहलौठा होने का हक बेच दिया।+ 17  तुम जानते हो कि बाद में जब उसने विरासत में आशीष पानी चाही तो उसे ठुकरा दिया गया। उसने आँसू बहा-बहाकर उसका* फैसला बदलने की बहुत कोशिश की,+ फिर भी वह उसे बदल न सका। 18  तुम सचमुच के पहाड़ के पास नहीं आए जिसे छुआ जा सके+ और जो आग की लपटों से जल रहा हो+ और न ही तुम काले बादल और घोर अंधकार और आँधी के पास आए हो।+ 19  न ही तुम तुरही की तेज़ आवाज़+ या किसी के बोलने की आवाज़ सुन रहे हो+ जिसे सुनने पर लोगों ने बिनती की थी कि उनसे और बात न की जाए।+ 20  क्योंकि वे इस आज्ञा से बहुत डर गए थे: “अगर कोई जानवर भी इस पहाड़ पर जाए, तो उसे पत्थरों से मार डाला जाए।”+ 21  और-तो-और, यह नज़ारा इतना भयानक था कि मूसा ने कहा, “मैं डर के मारे थर-थर काँप रहा हूँ।”+ 22  इसके बजाय तुम सिय्योन पहाड़ के पास+ और जीवित परमेश्‍वर की नगरी, स्वर्ग की यरूशलेम के पास,+ लाखों स्वर्गदूतों 23  की आम सभा में+ और परमेश्‍वर के पहलौठों की मंडली में आए हो, जिनके नाम स्वर्ग में लिखे गए हैं। और उस परमेश्‍वर के पास आए हो जो सबका न्यायी है+ और पवित्र शक्‍ति से पैदा हुए+ उन नेक जनों के पास आए हो जिन्हें परिपूर्ण किया गया है।+ 24  और नए करार+ के बिचवई यीशु+ और उस खून के पास आए हो जो उसने हम पर छिड़का है और जो हाबिल के खून से कहीं बेहतर तरीके से बोलता है।+ 25  सावधान रहो कि तुम उसकी बात सुनने से इनकार न करो* जो तुमसे बोल रहा है। क्योंकि जब वे लोग नहीं बच सके जिन्होंने उसकी बात सुनने से इनकार कर दिया जो उन्हें धरती पर परमेश्‍वर की चेतावनी दे रहा था, तो सोचो हम उससे मुँह मोड़कर कैसे बच सकेंगे जो स्वर्ग से बात करता है!+ 26  गुज़रे वक्‍त में तो उसकी आवाज़ से धरती काँप उठी थी,+ मगर अब उसने यह वादा किया है: “मैं एक बार फिर न सिर्फ धरती को बल्कि आकाश को भी हिलाऊँगा।”+ 27  “एक बार फिर” इन शब्दों से पता चलता है कि हिलायी जानेवाली चीज़ें नाश हो जाएँगी यानी वे चीज़ें नाश हो जाएँगी जो परमेश्‍वर ने नहीं बनायीं ताकि वे चीज़ें हमेशा तक बनी रहें जिन्हें हिलाया नहीं जाता। 28  तो यह जानते हुए कि हमें ऐसा राज मिलनेवाला है जिसे हिलाया नहीं जा सकता, आओ हम परमेश्‍वर की महा-कृपा पाते रहें, जिसके ज़रिए हम परमेश्‍वर का डर मानते हुए और उसके लिए श्रद्धा रखते हुए उसकी पवित्र सेवा करते रहें जो उसे स्वीकार हो। 29  क्योंकि हमारा परमेश्‍वर भस्म करनेवाली आग है।+

कई फुटनोट

शब्दावली देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
या “सज़ा भी देता है।”
या “प्रशिक्षण दिया जा रहा है।”
या “दर्द।”
शब्दावली देखें।
यानी अपने पिता का।
या “बहाने मत बनाओ; नज़रअंदाज़ मत करो।”

अध्ययन नोट

तसवीर और ऑडियो-वीडियो