इब्रानियों के नाम चिट्ठी 2:1-18

2  इसलिए हमने जो बातें सुनी हैं, उन पर और भी ज़्यादा ध्यान देना ज़रूरी है+ ताकि हम कभी-भी बहकर दूर न चले जाएँ।+  जब स्वर्गदूतों के ज़रिए कहा गया वचन+ इतना अटल साबित हुआ और उसके खिलाफ जिसने भी पाप किया और आज्ञा तोड़ी, उसे न्याय के मुताबिक सज़ा मिली,+  तो हम उस उद्धार के मामले में जो इतना महान है, लापरवाही बरतकर कैसे बच सकेंगे?+ इसके बारे में सबसे पहले हमारे प्रभु ने बताया था+ और फिर जिन लोगों ने उससे यह सुना था उन्होंने हमारे लिए इसे पुख्ता किया।  परमेश्‍वर ने भी चिन्ह और चमत्कार दिखाकर और तरह-तरह के शक्‍तिशाली कामों के ज़रिए+ और अपनी मरज़ी के मुताबिक पवित्र शक्‍ति के वरदान बाँटकर इसकी गवाही दी है।+  परमेश्‍वर ने आनेवाली उस दुनिया को, जिसके बारे में हम बता रहे हैं, स्वर्गदूतों के अधीन नहीं किया।+  मगर किसी गवाह ने कहा है, “इंसान है ही क्या कि तू उसका खयाल रखे? इंसान है ही क्या कि तू उसकी परवाह करे?+  तूने उसे स्वर्गदूतों से कुछ कमतर बनाया। और उसे महिमा और आदर का ताज पहनाया और उसे अपने हाथ की रचनाओं पर अधिकार दिया।  तूने सबकुछ उसके पैरों तले कर दिया।”+ जब परमेश्‍वर ने सबकुछ उसके अधीन कर दिया+ तो उसने ऐसा कुछ भी नहीं छोड़ा जो उसके अधीन न किया हो।+ यह सच है कि अब तक हम सबकुछ उसके अधीन नहीं देखते,+  मगर हम यीशु को देखते हैं जिसे स्वर्गदूतों से थोड़ा कमतर बनाया गया।+ और मौत का दुख झेलने की वजह से उसे महिमा और आदर का ताज पहनाया गया+ ताकि परमेश्‍वर की महा-कृपा से वह हर इंसान के लिए मौत का दुख झेले।+ 10  सबकुछ परमेश्‍वर की खातिर और उसी के ज़रिए वजूद में है। और यह सही था कि परमेश्‍वर बहुत सारे बेटों को महिमा में लाने के लिए,+ उनके उद्धार के खास अगुवे को दुख सहने दे+ और इस तरह उसे परिपूर्ण बनाए।+ 11  इसलिए कि पवित्र करनेवाला और जो पवित्र किए जा रहे हैं,+ सब एक ही पिता से हैं+ इसलिए वह उन्हें भाई पुकारने में शर्मिंदा महसूस नहीं करता,+ 12  जैसा वह कहता है, “मैं अपने भाइयों में तेरे नाम का ऐलान करूँगा, मंडली के बीच गीत गाकर तेरी तारीफ करूँगा।”+ 13  और फिर यह, “मैं उस पर भरोसा रखूँगा।”+ और यह भी, “देखो! मैं और मेरे ये बच्चे जो यहोवा* ने मुझे दिए हैं।”+ 14  इसलिए जैसे बच्चे हाड़-माँस के हैं, वह भी हाड़-माँस का बना+ ताकि अपनी मौत के ज़रिए उसे यानी शैतान*+ को मिटा दे, जिसके पास मार डालने की ताकत है+ 15  और उन सबको आज़ाद करे जो मौत के डर से पूरी ज़िंदगी गुलामी में पड़े थे।+ 16  वह असल में स्वर्गदूतों की नहीं बल्कि अब्राहम के वंश* की मदद कर रहा है।+ 17  इसीलिए ज़रूरी था कि वह हर मायने में अपने भाइयों जैसा बने+ ताकि वह परमेश्‍वर से जुड़ी बातों में एक दयालु और विश्‍वासयोग्य महायाजक बन सके और लोगों के पापों के लिए+ सुलह करानेवाला बलिदान चढ़ाए।*+ 18  उसने खुद भी उस वक्‍त बहुत दुख उठाया था जब उसकी परीक्षा ली जा रही थी,+ इसलिए अब वह उन लोगों की मदद करने के काबिल है जिनकी परीक्षा ली जा रही है।+

कई फुटनोट

अति. क5 देखें।
शा., “इबलीस।” शब्दावली देखें।
शा., “बीज।”
या “प्रायश्‍चित का बलिदान चढ़ाए; प्रायश्‍चित कराए।”

अध्ययन नोट

तसवीर और ऑडियो-वीडियो