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गीत 114

“सब्र रखो”

“सब्र रखो”

(याकूब 5:8)

  1. 1. यहोवा का ही नाम है

    जहाँ में जो है सबसे पाक।

    चाहता वो पूरे दिल से

    मिटाना अपने नाम से दाग।

    युगों से था सहनशील,

    किया प्यार इंसानों से;

    कभी भी ना थका वो,

    लिया काम सब्र से।

    यहोवा की है मरज़ी

    सभी इंसाँ पाएँ उद्‌-धार;

    रखा जो सब्र प्यार से,

    कभी ना जाए वो बेकार।

  2. 2. इस नेक राह पे हमारी,

    गुण सब्र का मदद करे।

    नाराज़गी से बचाके

    हिफाज़त मन की ये करे।

    अच्छाई देखे सब में

    या उम्मीद करे इसकी;

    तकलीफों से लड़ने की

    ये दे समझदारी।

    बढ़ती हैं खूबियाँ जो

    हम में पवित्र शक्‌-ति से,

    है सब्र उनमें से खास,

    बनाए याह जैसा हमें।