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दो राजाओं के बीच संघर्ष

दो राजाओं के बीच संघर्ष

तेरहवाँ अध्याय

दो राजाओं के बीच संघर्ष

1, 2. दानिय्येल के 11वें अध्याय में जो भविष्यवाणी दी गई है उस पर हमें क्यों ध्यान देना चाहिए?

दो दुश्‍मन राजा एक दूसरे पर हावी होने के लिए आपस में झूझ रहे हैं। यह संघर्ष सदियों तक चलता रहता है। पहले एक ज़्यादा ताकतवर हो जाता है और बाद में दूसरा। कभी-कभी तो एक राजा की हुकूमत का बोलबाला रहता है और दूसरा दबा रहता है और दोनों के बीच बरसों तक कोई जंग नहीं होती। और कभी अचानक ही जंग छिड़ जाती है और यह संघर्ष जारी रहता है। ज़रा ध्यान दीजिए कि इन दो दुश्‍मन राजाओं के बीच सदियों से चले आ रहे संघर्ष में कौन-कौन शामिल था। इसमें सीरिया का राजा सेल्युकस I निकेटोर, मिस्र का राजा टॉल्मी लेगस, सीरिया की राजकुमारी जो मिस्र की रानी बनी यानी क्लियोपेट्रा I, रोमी सम्राट औगूस्तुस और तिबिरियुस और पालमाइरा की महारानी ज़ेनोबिया भी शामिल है। और जब यह लड़ाई अपने आखिरी दौर में पहुँचती है तब इसमें नात्ज़ी जर्मनी, पूर्वी यूरोप के कम्युनिस्ट देशों का गुट, ब्रिटेन-अमरीकी विश्‍वशक्‍ति, राष्ट्र संघ (लीग ऑफ नेशन्स्‌) और संयुक्‍त राष्ट्र संघ (युनाइटिड नेशन्स्‌) भी शामिल हो जाते हैं। लेकिन जब यह संघर्ष अपने अंजाम तक पहुँचेगा, तब जो होगा उसके बारे में इनमें से किसी भी राजनैतिक हस्ती ने सोचा तक न होगा। इस संघर्ष के बारे में, आज से करीब 2,500 साल पहले यहोवा के स्वर्गदूत ने दानिय्येल को यह जानकारी दी थी। यह एक ज़बरदस्त और रोमांचक भविष्यवाणी थी।—दानिय्येल, अध्याय 11.

2 इस भविष्यवाणी की तफसील सुनकर दानिय्येल वाकई हैरान हो गया होगा। स्वर्गदूत ने उसे बताया कि कैसे इन दो राजाओं के बीच बैर शुरू होगा और सदियों तक चलता रहेगा। एक-दूसरे पर हुकूमत करने की होड़ में लगे हुए इन दो राजाओं का संघर्ष आज हमारे ज़माने तक भी पहुँच गया है। तो ज़ाहिर है कि इस भविष्यवाणी पर आज हमें भी ध्यान देना चाहिए। क्यों? क्योंकि इस भविष्यवाणी पर ध्यान देने से हमारा विश्‍वास मज़बूत होता है। जब हम देखते हैं कि कैसे इतिहास में इस भविष्यवाणी के पहले दौर की हर बात सच साबित हुई तो हमारा यकीन और भी बढ़ जाता है कि इस संघर्ष के आखिरी दौर के बारे में जो कुछ लिखा गया है वह भी ज़रूर सच साबित होगा। इसके अलावा अगर हम इस भविष्यवाणी पर करीब से ध्यान दें तो हमें एकदम साफ पता लग जाएगा कि आज हम समय की धारा में कहाँ तक आ पहुँचे हैं। इस पर ध्यान देने से हमारा यह संकल्प और भी मज़बूत होगा कि हम इन दोनों राजाओं में से किसी का भी पक्ष नहीं लेंगे। बल्कि हम यहोवा के वफादार बने रहेंगे और आखिर तक धीरज धरते हुए अपने उद्धार के लिए उसी की बाट जोहते रहेंगे। (भजन 146:3, 5) तो फिर, आइए हम बड़े ध्यान से सुनें कि यहोवा का दूत दानिय्येल से क्या कहता है।

यूनान के राज्य के विरुद्ध

3. “दारा नाम मादी राजा के राज्य के पहिले वर्ष” में यह स्वर्गदूत किसकी हिम्मत बँधाने के लिए खड़ा हुआ था?

3 यह स्वर्गदूत अपने बारे में बताता है, “दारा नाम मादी राजा के राज्य के पहिले वर्ष [सा.यु.पू. 539/538] में उसको हियाव दिलाने और बल देने के लिये मैं ही खड़ा हो गया।” (दानिय्येल 11:1) जब स्वर्गदूत ने दानिय्येल को यह संदेश दिया तब तक दारा मादी मर चुका था। मगर स्वर्गदूत बताता है कि इस भविष्यवाणी की शुरूआत दारा मादी के राज से ही होती है। दारा ने ही दानिय्येल को शेरों की मान्द से बाहर निकालने का हुक्म दिया था और इसके बाद उसने अपने पूरे राज्य में यह ऐलान भी करवाया कि उसकी प्रजा के सब लोग दानिय्येल के परमेश्‍वर का भय मानें और उसका आदर करें। (दानिय्येल 6:21-27) मगर दारा मादी के राज में, यह स्वर्गदूत दारा को बल देने के लिए नहीं खड़ा हुआ था? बल्कि वह अपने साथी और यहोवा के लोगों के प्रधान, मीकाएल को बल देने के लिए खड़ा हुआ था। (दानिय्येल 10:12-14 से तुलना कीजिए।) दारा मादी के राज में जिस दौरान मीकाएल, परमेश्‍वर का मकसद पूरा करने के लिए मादी-फारस के प्रधान या दुष्टात्मा से मुकाबला कर रहा था, उस दौरान यह स्वर्गदूत मीकाएल की मदद करने और उसकी हिम्मत बढ़ाने के लिए खड़ा हुआ था।

4, 5. मादी-फारसी विश्‍वशक्‍ति के चार फारसी राजा कौन थे जिनके आने की भविष्यवाणी स्वर्गदूत ने की?

4 परमेश्‍वर के इस स्वर्गदूत ने आगे बताया: “देख, फारस के राज्य में अब तीन और राजा उठेंगे; और चौथा राजा उन सभों से अधिक धनी होगा; और जब वह धन के कारण सामर्थी होगा, तब सब लोगों को यूनान के राज्य के विरुद्ध उभारेगा।” (दानिय्येल 11:2) मादी जाति के दारा के बाद, फारसी जाति से निकलनेवाले ये तीन राजा कौन होते?

5 फारसी जाति से निकलनेवाले पहले तीन राजा थे, कुस्रू महान, कैमबीसिस II और दारा I (हिस्तसपीज़)। कैमबीसिस II के भाई, बारदिया (या शायद बारदिया होने का दावा करनेवाले गौमाता नाम के एक जालसाज़) ने सिर्फ सात महीने तक राज किया, इसलिए इस भविष्यवाणी में उसके छोटे-से शासनकाल को कोई अहमियत नहीं दी गयी और यह भविष्यवाणी उस पर लागू नहीं होती। तीसरे फारसी राजा दारा I ने, सा.यु.पू. 490 में दूसरी बार यूनान देश पर चढ़ाई की। लेकिन यूनानियों ने फारस की सेनाओं को मैरेथॉन इलाके से मार भगाया, इसलिए वे पीछे हटकर एशिया माइनर में भाग गए। इसके बाद, एक बार फिर दारा I ने यूनान पर चढ़ाई करने के लिए बहुत सोच-समझकर और अच्छी तैयारी की लेकिन वह चढ़ाई नहीं कर सका और चार साल बाद मर गया। अब यह काम उसके बेटे, यानी फारस के ‘चौथे’ राजा जरक्सीज़ I के कंधों पर आ गया। यही जरक्सीज़ I, बाइबल में बताया गया राजा क्षयर्ष है जिसने एस्तेर से शादी की थी।—एस्तेर 1:1; 2:15-17.

6, 7. (क) फारस के चौथे राजा ने ‘यूनान के राज्य के विरुद्ध सब लोगों’ को कैसे ‘उभारा’? (ख) यूनान के खिलाफ जरक्सीज़ की चढ़ाई का क्या नतीजा निकला?

6 उस वक्‍त सारा यूनानी इलाका अलग-अलग राज्यों में बँटा हुआ था। जरक्सीज़ I ने इसी ‘यूनान के राज्य के विरुद्ध सब लोगों को उभारा,’ यानी हर एक साधन का इस्तेमाल किया। वह कैसे? किताब मादी और फारसी—विजेता और राजनयिक (अंग्रेज़ी) कहती है कि “जरक्सीज़ के सबसे खास मित्र और मंत्रियों पर यूनान से बदला लेने और उसको तहस-नहस करने का जुनून सवार था, और उन्हीं के दबाव में आकर जरक्सीज़ ने जल और थल दोनों तरफ से यूनान पर धावा बोलने की तैयारी की।” सा.यु.पू. पाँचवी सदी के यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस लिखते हैं कि “इससे पहले किसी ने लड़ाई के लिए इतने बड़े पैमाने पर तैयारी नहीं की थी।” हेरोडोटस कहते हैं कि मेरे हिसाब से समुद्री सेना में “कुल मिलाकर 5,17,610 सैनिक थे। थल सेना में, 17,00,000 सैनिक और 80,000 घुड़सवार थे। इनके अलावा ऊँटों पर लड़नेवाले अरबी लोग थे, और लीबिया के लड़ाई के रथ भी थे जो मेरे हिसाब से 20,000 थे। इस तरह जल और थल की फौज की कुल गिनती 23,17,610 थी।”

7 सा.यु.पू. 480 में जरक्सीज़ अपनी इस विशाल फौज को लेकर यूनान की तरफ बढ़ा, वह एक ही बार में सब कुछ जीत लेना चाहता था। यूनान की सेना ने थर्मोपाइली में फारस से ज़बरदस्त मुकाबला किया और उन्हें आगे बढ़ने से रोके रखा। लेकिन फारसी फौजें वहाँ से आगे बढ़ने में कामयाब हुईं और उन्होंने एथेन्स को बुरी तरह तबाह कर दिया। लेकिन उन्हें सलामिस में करारी हार का सामना करना पड़ा। और सा.यु.पू. 479 में यूनान ने प्लेटीआ में भी फारसी फौजों को हरा दिया। फारस हार गया, मगर फिर भी अगले 143 साल तक मादी-फारस साम्राज्य बना रहा। जरक्सीज़ के बाद, फारस की राजगद्दी पर सात अलग-अलग राजा बैठे मगर उनमें से किसी ने भी दोबारा यूनान के साथ युद्ध नहीं किया। लेकिन इसके बाद यूनान में एक पराक्रमी राजा उठ खड़ा हुआ।

एक बड़ा साम्राज्य चार हिस्सों में बँट जाता है

8. कौन-सा “पराक्रमी राजा” उठा और उसने किस तरह ‘अपने राज्य को बहुत बढ़ाया’?

8 उस स्वर्गदूत ने कहा: “उसके बाद एक पराक्रमी राजा उठकर अपना राज्य बहुत बढ़ाएगा, और अपनी इच्छा के अनुसार ही काम किया करेगा।” (दानिय्येल 11:3) यह राजा सिकंदर था। वह वाकई “पराक्रमी” साबित हुआ इसीलिए वह सिकंदर महान कहलाया। सा.यु.पू. 336 में बीस साल का सिकंदर “उठकर” मकिदुनिया के छोटे से राज्य का राजा बना। लेकिन जल्द ही अपने पिता फिलिप्प II की योजना के मुताबिक उसने फारस साम्राज्य के इलाके, एशिया माइनर के पश्‍चिम और उत्तर-पूर्व में कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद वह फरात और टिग्रिस नदी को पार करके आगे बढ़ा। गौगमेला में उसके 47,000 सैनिकों ने फारस के सम्राट, दारा III की 2,50,000 की बड़ी फौज को तित्तर-बित्तर कर दिया। हारा हुआ दारा वहाँ से भाग गया और बाद में उसी के लोगों ने उसका कत्ल कर दिया। दारा की मौत के साथ ही फारसी राजाओं का राजवंश खत्म हो गया। अब यूनान विश्‍वशक्‍ति बन गया था। सिकंदर, यूनान के बड़े साम्राज्य पर हुकूमत करने लगा। उसने ‘अपने राज्य को बहुत बढ़ाया, और अपनी इच्छा के अनुसार ही काम किया।’

9, 10. यह भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई कि सिकंदर के वंश को उसका साम्राज्य नहीं मिलेगा?

9 लेकिन दुनिया पर सिकंदर की हुकूमत थोड़े ही दिनों तक रहनेवाली थी, क्योंकि परमेश्‍वर के दूत ने कहा था: “जब वह बड़ा होगा, तब उसका राज्य टूटेगा और चारों दिशाओं में बटकर अलग अलग हो जाएगा; और न तो उसके राज्य की शक्‍ति ज्यों की त्यों रहेगी और न उसके वंश को कुछ मिलेगा; क्योंकि उसका राज्य उखड़कर, उनकी अपेक्षा और लोगों को प्राप्त होगा।” (दानिय्येल 11:4) और ऐसा ही हुआ। सा.यु.पू. 323 में जब सिकंदर पूरे 33 साल का भी नहीं हुआ था तब वह बाबुल में, अचानक बीमार होकर मर गया।

10 सिकंदर ने जो बड़ा साम्राज्य खड़ा किया था वह “उसके वंश” को नहीं मिला। सिकंदर के मरने के बाद सबसे पहले उसका भाई फिलिप्प III आरिडीज़ राजा बना। लेकिन वह सात साल तक भी राज्य नहीं कर पाया कि सिकंदर की माँ ओलिम्पियास के कहने पर सा.यु.पू. 317 में उसका कत्ल कर दिया गया। उसके बाद सिकंदर के अपने बेटे सिकंदर IV ने सा.यु.पू. 311 तक राज किया लेकिन उसके पिता के एक सेनापति, कसांडर ने उसका भी कत्ल कर दिया। इसके बाद सिकंदर के एक नाजायज़ बेटे हिराकलीस ने अपने पिता के नाम का सहारा लेकर राज करना चाहा लेकिन सा.यु.पू. 309 में उसका भी कत्ल कर दिया गया। इस तरह सिकंदर का वंश खत्म हो गया और “उसका राज्य” उसकी अपनी औलाद को नहीं मिला।

11. सिकंदर का राज्य कैसे “चारों दिशाओं में बटकर अलग अलग” हो गया?

11 सिकंदर की मौत के बाद उसका राज्य “चारों दिशाओं में बटकर अलग अलग” हो गया। सिकंदर के कई सेनापतियों ने उसके साम्राज्य के अलग-अलग हिस्सों पर अपना कब्ज़ा जमाने के लिए आपस में लड़ाई की। उसका एक सेनापति एन्टिगोनस I, एक आँख से काना था। उसने सिकंदर के पूरे साम्राज्य पर कब्ज़ा करने की कोशिश की। लेकिन वह फ्रिजीया के इपसस नगर में एक युद्ध में मारा गया। सा.यु.पू. 301 तक, दूर-दूर तक फैले सिकंदर के साम्राज्य पर उसके सेनापतियों ने कब्ज़ा कर लिया था। सेनापति कसांडर ने मकिदुनिया और ग्रीस को ले लिया। सेनापति लिसिमाकस ने एशिया माइनर और थ्रेस को ले लिया। सेल्युकस I निकेटोर ने मेसोपोटामिया और सीरिया पर कब्ज़ा कर लिया। और टॉल्मी लेगस ने मिस्र (इजिप्ट) और इस्राएल देश पर कब्ज़ा कर लिया। ठीक जैसा भविष्यवाणी में लिखा था सिकंदर का बड़ा यूनान साम्राज्य चार छोटे-छोटे राज्यों में बँट गया।

दो दुश्‍मन राजा उभरकर सामने आते हैं

12, 13. (क) सिकंदर के साम्राज्य से निकले चार राज्यों में से सिर्फ दो ही कैसे रह गए? (ख) सेल्युकस I ने सीरिया में किस राजवंश की शुरूआत की?

12 सेनापति कसांडर कुछ ही साल बाद मर गया और सा.यु.पू. 285 में लिसिमाकस ने कसांडर के हिस्से को अपने राज्य में मिला लिया। फिर सा.यु.पू. 281 में लिसिमाकस, सेल्युकस I निकेटोर से लड़ाई में हार गया और लिसिमाकस का हिस्सा सेल्युकस के पास आ गया। इस तरह सेल्युकस I निकेटोर, सिकंदर के साम्राज्य के एशिया के बड़े भाग का अधिकारी बन गया। हालाँकि, सा.यु.पू. 281 में सेल्युकस की भी हत्या कर दी गयी फिर भी सेल्युकस राजवंश चलता रहा। सा.यु.पू. 276 में सिकंदर के सेनापति एन्टिगोनस I का पोता, एन्टिगोनस II गोनाटस मकिदुनिया की राजगद्दी पर बैठा। लेकिन कुछ समय बाद मकिदुनिया, रोम के अधीन होता चला गया और आखिरकार सा.यु.पू. 146 में यह रोम का एक प्रांत बन गया।

13 अब सिकंदर के साम्राज्य से निकले चार राज्यों में से सिर्फ दो ही रह गए—एक पर सेल्युकस I निकेटोर का और दूसरे पर टॉल्मी लेगस का अधिकार था। सेल्युकस I से सीरिया में सेल्युकसवंशी राजाओं की शुरूआत हुई। उसने सीरिया में दो शहर बसाए, एक था अन्ताकिया जो उसकी नई राजधानी बना। दूसरा था सेलुशिया शहर जो एक बड़ा बंदरगाह था। अन्ताकिया वही शहर है जिसमें प्रेरित पौलुस ने बाद में प्रचार किया था और जहाँ यीशु के चेले पहली बार मसीही कहलाए थे। (प्रेरितों 11:25, 26; 13:1-4) सा.यु.पू. 281 में सेल्युकस को मार डाला गया लेकिन उसका राजवंश सा.यु.पू. 64 तक चलता रहा। इसके बाद रोम के सेनापति नायुस पॉम्पी ने सीरिया को रोम साम्राज्य के प्रांतों में शामिल कर लिया।

14. मिस्र में टॉल्मी का राजवंश कब शुरू हुआ?

14 सिकंदर के साम्राज्य के चार हिस्सों में से सेनापति टॉल्मी लेगस या टॉल्मी I का राज्य सबसे ज़्यादा दिनों तक रहा। उसने सा.यु.पू. 305 में अपने नाम के साथ राजा का खिताब जोड़ लिया। टॉल्मी I मिस्र के टॉल्मीवंशियों का पहला राजा बना। उसका राजवंश सा.यु.पू. 30 तक मिस्र में राज करता रहा। इसी साल में रोम ने उस पर कब्ज़ा कर लिया और वह रोमी साम्राज्य का एक प्रांत बन गया।

15. सिकंदर के साम्राज्य के चार राज्यों में से कौन-से दो ताकतवर राजा उभरकर सामने आए और उन्होंने किस संघर्ष की शुरूआत की?

15 इस तरह, सिकंदर के साम्राज्य के चार राज्यों में से जो दो ताकतवर राजा उभरकर सामने आए वे थे सीरिया का राजा सेल्युकस I निकेटोर और दूसरा मिस्र (इजिप्ट) का राजा टॉल्मी I. यही दानिय्येल के 11 अध्याय में बताए गए ‘उत्तर’ और ‘दक्खिन’ के राजा साबित हुए। इन्हीं के संघर्ष के साथ “उत्तर देश के राजा” और “दक्खिन देश के राजा” के बीच सदियों तक चलनेवाले संघर्ष की भविष्यवाणी शुरू होती है। यहोवा के स्वर्गदूत ने इन राजाओं के नाम नहीं बताए क्योंकि सदियों के दौरान अलग-अलग राजा और अलग-अलग राजनैतिक शक्‍तियाँ इन दोनों की जगह लेती रहतीं और ये राजा और इनके देश बदलते रहते। परमेश्‍वर के दूत ने इस भविष्यवाणी में सदियों तक चलनेवाले इस संघर्ष की हर छोटी-छोटी बात का ज़िक्र नहीं किया, बल्कि उसने सिर्फ उन्हीं राजाओं और घटनाओं का ज़िक्र किया है जिनका इस संघर्ष से सीधा-सीधा ताल्लुक है।

संघर्ष शुरू होता है

16. (क) उत्तर और दक्खिन के राजा, किसके उत्तर और दक्खिन में थे? (ख) ‘दक्खिन देश का राजा’ और ‘उत्तर देश का राजा’ बननेवाले सबसे पहले दो राजा कौन थे?

16 यहोवा का दूत इस हैरतअंगेज़ संघर्ष की शुरूआत के बारे में बताता है: “दक्खिन देश का राजा बल पकड़ेगा; परन्तु उसका [सिकंदर का] एक हाकिम [यानी, उत्तर देश का राजा] उस से अधिक बल पकड़कर प्रभुता करेगा; यहां तक कि उसकी प्रभुता बड़ी हो जाएगी।” (दानिय्येल 11:5) जब दानिय्येल को यह दर्शन मिला था तब तक, दानिय्येल के जाति-भाई यानी यहूदी, बाबुल की गुलामी से छूटकर यहूदा में बस चुके थे। तो यहाँ बताया गया ‘उत्तर देश का राजा’ यहूदा देश के उत्तर में था और ‘दक्खिन देश का राजा’ यहूदा के दक्खिन में था। ‘दक्खिन का [पहला] राजा’ था, मिस्र पर राज करनेवाला टॉल्मी I. सिकंदर के सेनापति टॉल्मी I के खिलाफ जो राजा कामयाब हुआ और जिसने ‘बल पकड़कर बड़े राज्य पर प्रभुता’ की, वह सीरिया का राजा सेल्युकस I निकेटोर था। इसलिए, राजा सेल्युकस I निकेटोर ही भविष्यवाणी में बताया गया ‘उत्तर देश का राजा’ साबित हुआ।

17. उत्तर देश के राजा और दक्खिन देश के राजा के बीच जब संघर्ष शुरू हुआ तब यहूदा देश किसके अधीन था?

17 जब यह संघर्ष शुरू हुआ तब यहूदा देश, ‘दक्खिन के राजा’ टॉल्मी I के अधीन था। करीब सा.यु.पू. 320 से, टॉल्मी I के कहने में आकर यहूदी मिस्र के सिकंदरिया में आकर बसने लगे। बहुत जल्द सिकंदरिया में एक यहूदी बस्ती फलने-फूलने लगी। यहीं सिकंदरिया में टॉल्मी I ने एक मशहूर लाइब्रेरी भी बनवाई। सा.यु.पू. 198 तक यहूदा देश के यहूदियों पर मिस्र के टॉल्मीवंशी राजाओं का अधिकार रहा।

18, 19. कई वर्षों के बीतने पर इन दो दुश्‍मन राजाओं ने कैसे आपस में एक ‘वाचा बान्धी’?

18 इन दोनों राजाओं के बारे में उस स्वर्गदूत ने भविष्यवाणी की थी: “कई वर्षों के बीतने पर, ये दोनों आपस में मिलेंगे, और दक्खिन देश के राजा की बेटी उत्तर देश के राजा के पास शान्ति की वाचा बान्धने को आएगी; परन्तु उसका बाहुबल बना न रहेगा, और न वह राजा और न उसका नाम रहेगा; परन्तु वह स्त्री अपने पहुंचानेवालों और अपने पिता और अपने सम्भालनेवालों समेत अलग कर दी जाएगी।” (दानिय्येल 11:6) आइए देखें कि यह भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई?

19 यह भविष्यवाणी सेल्युकस I निकेटोर के बाद उसकी गद्दी पर बैठनेवाले उसके बेटे, एन्टियोकस I पर लागू नहीं होती क्योंकि उसने दक्खिन के राजा के खिलाफ कभी कोई बड़ी लड़ाई नहीं लड़ी। लेकिन यह भविष्यवाणी एन्टियोकस I के बेटे, एन्टियोकस II पर लागू होती है क्योंकि उसी ने टॉल्मी I के बेटे टॉल्मी II के खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ी। एन्टियोकस II ने अब उत्तर देश के राजा की जगह ली और टॉल्मी II दक्खिन देश का राजा बना। उत्तर के राजा एन्टियोकस II ने लाओदिस से शादी की और उनका एक बेटा हुआ जिसका नाम उन्होंने सेल्युकस II रखा। दूसरी तरफ टॉल्मी II की एक बेटी हुई जिसका नाम था बरनिसी। सा.यु.पू. 250 में इन दोनों राजाओं ने आपस में एक ‘वाचा बान्धी।’ इस मिलाप की कीमत चुकाने के लिए, एन्टियोकस II ने अपनी पत्नी लाओदिस को तलाक देकर “दक्खिन देश के राजा की बेटी” बरनिसी से शादी कर ली। इन दोनों के जो बेटा हुआ उसे ही सीरिया की राजगद्दी का वारिस घोषित किया गया, लाओदिस के बेटों को नहीं।

20. (क) बरनिसी का “बाहुबल” कैसे बना न रहा? (ख) कैसे बरनिसी को, उसके “पहुंचानेवालों” और उसे ‘सम्भालनेवाले’ समेत अलग कर दिया गया? (ग) एन्टियोकस II की मौत पर जब उसका “नाम” या बल नहीं रहा तब सीरिया का राजा कौन बना?

20 दक्खिन के राजा की बेटी, बरनिसी का “बाहुबल” या सहारा और उसकी ताकत उसका पिता टॉल्मी II था। लेकिन जब सा.यु.पू. 246 में टॉल्मी II की मौत हो गई तब बरनिसी का अपने पति पर ‘बाहुबल बना न रहा।’ एन्टियोकस II ने बरनिसी को त्याग दिया और दोबारा लाओदिस से शादी कर ली और यह घोषित किया कि लाओदिस का बेटा ही उसकी राजगद्दी का वारिस होगा। फिर रानी लाओदिस के इशारे पर बरनिसी और उसके बेटे का कत्ल कर दिया गया। इतना ही नहीं, सबूत यह भी दिखाते हैं कि जिन सेवकों ने बरनिसी को मिस्र से सीरिया ‘पहुँचाया’ था उनका भी वही हश्र हुआ जो बरनिसी का हुआ था। लाओदिस ने एन्टियोकस II को भी नहीं छोड़ा। उसने उसे ज़हर देकर मार डाला, इस तरह ‘न वह राजा रहा और न उसका नाम [बल] रहा।’ जैसा भविष्यवाणी में लिखा था ठीक वैसा ही हुआ। बरनिसी का “पिता” और थोड़ी देर के लिए उसे ‘सम्भालनेवाला’ उसका सीरियाई पति दोनों मर गए। अब लाओदिस का बेटा, सेल्युकस II सीरिया का राजा बन गया। तो ‘दक्खिन का राजा’ यानी टॉल्मी वंश का अगला राजा यह सब देखकर क्या करनेवाला था?

एक राजा अपनी बहन के खून का बदला लेता है

21. (क) बरनिसी की “जड़ों” से निकलनेवाली “डाल” कौन था और वह कैसे ‘बढ़ा’? (ख) टॉल्मी III ने “उत्तर के राजा के गढ़ में प्रवेश” कैसे किया और वह कैसे उसके खिलाफ प्रबल हुआ?

21 स्वर्गदूत ने कहा: “फिर उसकी जड़ों में से एक डाल उत्पन्‍न होकर उसके स्थान में बढ़ेगी; वह सेना समेत उत्तर के राजा के गढ़ में प्रवेश करेगा, और उन से युद्ध करके प्रबल होगा।” (दानिय्येल 11:7) बरनिसी के माँ-बाप या उसकी “जड़ों” से निकली “डाल” उसका भाई था। अपने पिता टॉल्मी II की मौत होने पर, उसका बेटा टॉल्मी III उसकी जगह ‘बढ़ा’ यानी मिस्र का फिरौन बना। अब टॉल्मी III दक्खिन का राजा था। फौरन उसने अपनी बहन बरनिसी की मौत का बदला लेने की तैयारी की। उसने सीरिया के राजा सेल्युकस II के खिलाफ चढ़ाई की जिसने बरनिसी और उसके बेटे का कत्ल करने में अपनी माँ लाओदिस की मदद की थी। टॉल्मी III ने “उत्तर के राजा के गढ़” पर हमला किया। उसने सीरिया की राजधानी, अन्ताकिया के गढ़ जीत लिए और राजमाता लाओदिस को मार डाला। वह उत्तर के राजा के साम्राज्य के पूर्व में बढ़ता चला गया। वह रास्ते में बाबेलोनिया को लूटता हुआ भारत तक पहुँच गया।

22. टॉल्मी III क्या लेकर मिस्र वापस लौटा और उसने क्यों “कुछ वर्ष तक उत्तर देश के राजा के विरुद्ध हाथ रोके” रखा?

22 इसके बाद क्या हुआ? परमेश्‍वर का स्वर्गदूत हमें बताता है: “तब वह उनके देवताओं की ढली हुई मूरतों, और सोने-चान्दी के मनभाऊ पात्रों को छीनकर मिस्र में ले जाएगा; इसके बाद वह कुछ वर्ष तक उत्तर देश के राजा के विरुद्ध हाथ रोके रहेगा।” (दानिय्येल 11:8) इस घटना से करीब 200 साल पहले, जब फारसी राजा कैमबीसिस II ने मिस्र को जीता था तब वह लूट में मिस्र के देवी-देवताओं की “ढली हुई मूरतों” को फारस की उस वक्‍त की राजधानी सूसा ले गया था। टॉल्मी III मिस्र के देवी-देवताओं की इन्हीं मूरतों को “छीनकर” या लूटकर वापस मिस्र ले आया। इसके अलावा वह इस लड़ाई में लूट के तौर पर “सोने-चान्दी के मनभाऊ पात्रों” का बड़ा खज़ाना भी मिस्र लेकर आ गया। लेकिन वह अपनी इस जीत का फायदा नहीं उठा सका। क्यों? क्योंकि मिस्र में बगावत छिड़ गयी थी और उसे कुचलने के लिए टॉल्मी III को मिस्र में ही रहना पड़ा। इसी वज़ह से ‘इसके बाद वह उत्तर के राजा के विरुद्ध हाथ रोके रहा।’ उसने उत्तर के राजा, सेल्युकस II के खिलाफ आगे कोई युद्ध नहीं किया।

सीरिया के राजा का जवाबी हमला

23. दक्खिन के राजा के देश में आने के बाद उत्तर का राजा क्यों “अपने देश में लौट” गया?

23 अब ‘उत्तर के राजा’ ने क्या किया? दानिय्येल को इस बारे में बताया गया: “तब वह राजा दक्खिन देश के राजा के देश में आएगा, परन्तु फिर अपने देश में लौट जाएगा।” (दानिय्येल 11:9) उत्तर के राजा यानी सीरिया के राजा सेल्युकस II ने जवाबी हमला किया। वह दक्खिन देश के राजा यानी मिस्र के राजा के “देश” में घुसा तो ज़रूर लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा। इस हार के बाद, सा.यु.पू. 242 में सेल्युकस II अपनी बची हुई सेना को लेकर “अपने देश” सीरिया की राजधानी अन्ताकिया “लौट” गया। उसकी मौत के बाद उसका बेटा सेल्युकस III उसकी जगह राजगद्दी पर बैठा।

24. (क) सेल्युकस III का क्या हश्र हुआ? (ख) किस तरह सीरिया का राजा एन्टियोकस III, दक्खिन के राजा के देश में “उमण्डनेवाली नदी की नाईं आकर देश के बीच होकर” गया?

24 सीरिया के राजा सेल्युकस II के पुत्रों के बारे में क्या भविष्यवाणी की गई थी? इसके बारे में स्वर्गदूत ने दानिय्येल को बताया: “उसके पुत्र झगड़ा मचाकर बहुत से बड़े बड़े दल इकट्ठे करेंगे, और उमण्डनेवाली नदी की नाईं आकर देश के बीच होकर जाएंगे, फिर लौटते हुए उसके गढ़ तक झगड़ा मचाते जाएंगे।” (दानिय्येल 11:10) यह भविष्यवाणी सेल्युकस II की राजगद्दी पर बैठनेवाले उसके बेटे, सेल्युकस III पर लागू नहीं हुई क्योंकि उसे राजा बने हुए तीन साल भी नहीं हुए थे कि उसका कत्ल कर दिया गया। इसके बजाय यह भविष्यवाणी उसके भाई एन्टियोकस III यानी एन्टियोकस महान पर लागू होती है, जो उसके बाद सीरिया का राजा बना। सेल्युकस II के इसी पुत्र ने, दक्खिन के राजा टॉल्मी IV के खिलाफ युद्ध करने के लिए बड़ी फौज तैयार की। उत्तर के इस नए सीरियाई राजा, एन्टियोकस III ने मिस्र पर जमकर हमला किया और सेलुशिया के बंदरगाह और सीली-सीरिया के प्रांत, टायर और टॉल्मेयस के नगर और आस-पास के दूसरे नगरों को फिर से जीत लिया। टॉल्मी IV ने उसका सामना करने के लिए जो फौज भेजी उसे भी एन्टियोकस III ने खदेड़ दिया और यहूदा देश के कई नगरों को अपने कब्ज़े में ले लिया। इसके बाद सा.यु.पू. 217 के बसंत में, विजयी राजा एन्टियोकस III टॉल्मेयस छोड़कर उत्तर में सीरिया के ‘अपने गढ़’ में लौट गया। लेकिन बहुत जल्द पासा पलटनेवाला था।

पासा पलटता है

25. टॉल्मी IV ने एन्टियोकस III के साथ किस जगह युद्ध किया और किसे दक्खिन के राजा के “हाथ में कर” दिया गया?

25 आइए हम भी दानिय्येल की तरह ध्यान से सुनें कि स्वर्गदूत आगे क्या भविष्यवाणी करता है: “तब दक्खिन देश का राजा चिढ़ेगा, और निकलकर उत्तर देश के उस राजा से युद्ध करेगा, और वह राजा लड़ने के लिए बड़ी भीड़ इकट्ठी करेगा, परन्तु वह भीड़ उसके हाथ में कर दी जाएगी।” (दानिय्येल 11:11) दक्खिन का राजा टॉल्मी IV 75,000 की सेना को लेकर उत्तर दिशा से आनेवाले अपने दुश्‍मन की तरफ बढ़ा। उससे मुकाबला करने के लिए, उत्तर के राजा एन्टियोकस III ने 68,000 सैनिकों की “बड़ी भीड़ इकट्ठी” की थी। लेकिन मिस्र की सीमा से थोड़ी ही दूर, समुद्र-तट पर बसे रफाया नगर में यह “बड़ी भीड़” युद्ध में दक्खिन के राजा टॉल्मी IV से हार गयी और उसके “हाथ में कर दी” गयी।

26. (क) रफाया की लड़ाई में दक्खिन के राजा ने किन लोगों को ‘गिराया,’ और वहाँ जो समझौता किया गया उसकी क्या शर्तें थीं? (ख) टॉल्मी IV अपने “प्रबल” होने और जीतने का फायदा क्यों नहीं उठा पाया? (ग) दक्खिन का अगला राजा कौन बना?

26 भविष्यवाणी में आगे कहा गया है: “उस भीड़ को जीत करके उसका मन फूल उठेगा, और वह लाखों लोगों को गिराएगा, परन्तु वह प्रबल न होगा।” (दानिय्येल 11:12) जैसे भविष्यवाणी में लिखा था, दक्खिन के राजा टॉल्मी IV ने सीरिया के 10,000 पैदल सैनिकों के अलावा 300 घुड़सवारों को ‘गिरा दिया’ या मार डाला और वह 4,000 को बंदी बनाकर ले गया। फिर इन राजाओं ने आपस में समझौता किया जिसकी शर्त के मुताबिक एन्टियोकस III के पास सेलुशिया का बंदरगाह तो रह गया, लेकिन फिनिशिया और सीली-सीरिया का प्रांत उसे वापस देना पड़ा। इस जीत से दक्खिन के राजा टॉल्मी IV का मन ‘फूल उठा।’ यहूदा देश अभी-भी उसी के अधीन था, इसलिए उसका इस तरह ‘फूल उठना’ खासकर यहोवा के खिलाफ था। वह सीरिया के राजा के खिलाफ “प्रबल” तो हुआ लेकिन जीतने के बाद उसने अपनी हुकूमत को बढ़ाने की और कोशिश नहीं की। उत्तर के राजा के खिलाफ मिले इस सुनहरे मौके का उसने फायदा नहीं उठाया। इसके बजाय, दक्खिन का राजा टॉल्मी IV रंगरलियों और ऐयाशी में डूब गया। उसकी मौत के बाद उसका पाँच साल का बेटा टॉल्मी V मिस्र की राजगद्दी पर बैठा और अब वह दक्खिन का राजा था। उधर उत्तर का राजा एन्टियोकस III अभी-भी ज़िंदा था।

हमलावर वापस आता है

27. किस तरह उत्तर का राजा ‘कई दिनों के बीतने पर’ मिस्र से अपने इलाके वापस लेने के लिए आया?

27 एन्टियोकस III ने अपनी ज़िंदगी में कई लड़ाइयाँ जीतीं और अपने इन कारनामों की वज़ह से वह एन्टियोकस महान कहलाने लगा। उसके बारे में स्वर्गदूत ने कहा: “उत्तर देश का राजा लौटकर पहिली से भी बड़ी भीड़ इकट्ठी करेगा; और कई दिनों वरन वर्षों के बीतने पर वह निश्‍चय बड़ी सेना और सम्पत्ति लिए हुए आएगा।” (दानिय्येल 11:13) दक्खिन के राजा की मिस्र की फौजों ने जब एन्टियोकस III को रफाया में हराया था तब से 16 या उससे ज़्यादा साल बीत चुके थे। इन्हीं दिनों या सालों के बीतने पर उत्तर का राजा एन्टियोकस III “पहिली से भी बड़ी भीड़” या फौज “इकट्ठी” कर मिस्र के राजा टॉल्मी V से लड़ने आया। टॉल्मी V उम्र में बहुत छोटा था और एन्टियोकस III इस मौके का फायदा उठाकर उससे वह सभी इलाके जीत लेना चाहता था जो मिस्र के राजा की शर्त पूरा करने में उससे छीन लिए गए थे। इसमें कामयाब होने के लिए उसने मकिदुनिया के राजा फिलिप्प V की भी मदद ली।

28. दक्खिन के छोटे-से राजा के सामने कौन-कौन सी समस्याएँ थीं?

28 स्वर्गदूत ने कहा था: “उन दिनों में बहुत से लोग दक्खिन देश के राजा के विरुद्ध उठेंगे।” (दानिय्येल 11:14क) दक्खिन के राजा टॉल्मी V को ना सिर्फ एन्टियोकस III और उसके साथ मकिदुनिया के राजा की बढ़ती फौजों का सामना करना था बल्कि जैसा भविष्यवाणी में बताया गया था उसके अपने राज में भी बहुत-से लोग “उसके विरुद्ध” खड़े हो गए। उसके अपने देश, मिस्र में बहुत गंभीर समस्याएँ खड़ी हो रही थीं। छोटे-से टॉल्मी V की देखभाल करनेवाला और उसके नाम से राज करनेवाला, उसका सरपरस्त अगाथेक्लीज़ मिस्रियों पर ज़ुल्म कर रहा था। इसलिए कइयों ने बगावत कर दी। इसके अलावा स्वर्गदूत ने यह भी बताया था: “तेरे लोगों में से भी अनेक उपद्रवी लोग सिर उठाएंगे जिससे कि दर्शन की बात पूरी हो, पर वे ठोकर खाएंगे।” (दानिय्येल 11:14ख, NHT) जी हाँ, दानिय्येल के लोगों में से भी कुछ लोग “उपद्रवी” या क्रांतिकारी बन गए। लेकिन वे यहूदी अपने देश को अन्यजातियों से आज़ाद कराने का जो भी “दर्शन” देख रहे थे वह झूठा था। वे हरगिज़ कामयाब नहीं होते बल्कि “ठोकर” खाते।

29, 30. (क) किस तरह ‘दक्खिन की बांहें’ उत्तर के हमले से हार गयीं? (ख) किस तरह उत्तर का राजा ‘शिरोमणि देश में आकर खड़ा हो गया’?

29 यहोवा के स्वर्गदूत ने आगे भविष्यवाणी की: “तब उत्तर देश का राजा आकर किला बान्धेगा और दृढ़ नगर ले लेगा। और दक्खिन देश के न तो प्रधान [बांहें, फुटनोट] खड़े रहेंगे और न बड़े वीर; क्योंकि किसी के खड़े रहने का बल न रहेगा। तब जो भी उनके विरुद्ध आएगा, वह अपनी इच्छा पूरी करेगा, और वह हाथ में सत्यानाश लिए हुए शिरोमणि देश में भी खड़ा होगा और उसका साम्हना करनेवाला कोई न रहेगा।”—दानिय्येल 11:15, 16.

30 ‘दक्खिन की बांहें’ या टॉल्मी V की सेनाएँ, उत्तर के राजा की सेनाओं से बुरी तरह हार गयीं। पनीयास (कैसरिया फिलिप्पी) में एन्टियोकस III ने मिस्र के सेनापति स्कोपस और उसके 10,000 चुने हुए सैनिकों या ‘बड़े वीरों’ को खदेड़ दिया और वे भागकर फिनिशिया के बंदरगाह “दृढ़ नगर” सिदोन में घुस गए। लेकिन एन्टियोकस III ने इस नगर को घेरकर और ‘किला बाँधकर,’ सा.यु.पू. 198 में उस पर कब्ज़ा कर लिया। दक्खिन के राजा की सेनाएँ उसके सामने खड़ी नहीं रह सकीं इसलिए एन्टियोकस III आगे बढ़ता गया और उसने “अपनी इच्छा पूरी” की। इसके बाद उसने यहूदा की राजधानी यरूशलेम या “शिरोमणि देश” पर चढ़ाई की। इसलिए सा.यु.पू. 198 में यरूशलेम और यहूदा, दक्खिन के राजा टॉल्मी V के हाथों से निकलकर उत्तर के राजा एन्टियोकस III के हाथों में चला गया। इस तरह उत्तर का राजा, एन्टियोकस III ‘शिरोमणि देश में खड़ा’ हो गया। अगर कोई भी यहूदी या मिस्री सर उठाता तो वह अपने हाथों से उसका “सत्यानाश” कर देता। लेकिन यह उत्तर का राजा कब तक अपनी मनमानी कर सकता था?

रोम इस हमलावर के मुँह में लगाम देता है

31, 32. उत्तर के राजा को दक्खिन के राजा के सामने शांति की “सन्धि का प्रस्ताव” क्यों रखना पड़ा?

31 यहोवा का स्वर्गदूत हमें इसका यह जवाब देता है: “वह [उत्तर का राजा] अपने सम्पूर्ण राज्य की शक्‍ति सहित आने का दृढ़ निश्‍चय करेगा और सन्धि का प्रस्ताव रखकर उसे लागू भी करेगा। वह उसके राज्य के पतन के लिए एक युवती देगा, पर यह न तो स्थिर रहेगी और न कोई लाभ पहुंचाएगी।”—दानिय्येल 11:17, NHT.

32 उत्तर के राजा एन्टियोकस III ने “अपने सम्पूर्ण राज्य की शक्‍ति सहित” मिस्र को अपने कब्ज़े में करने का “दृढ़ निश्‍चय” किया। उसने मकिदुनिया के राजा फिलिप्प V के साथ मिलकर मिस्र के छोटे-से राजा टॉल्मी V से अपने इलाके छीनने के लिए युद्ध करने की तैयारी की। तब टॉल्मी V के सरपरस्तों ने मदद के लिए रोम से फरियाद की। उस वक्‍त रोम साम्राज्य एक बड़ी शक्‍ति बनकर उभर रहा था। रोम नहीं चाहता था कि एन्टियोकस III की हुकूमत बढ़े इसलिए उसने फौरन दक्खिन के राजा की मदद करने के लिए अपनी आस्तीनें चढ़ा लीं। रोम की ज़बरदस्त ताकत के सामने उत्तर का राजा एन्टियोकस III मजबूर हो गया। आखिरकार उसे दक्खिन के राजा, टॉल्मी V के सामने शांति की “सन्धि का प्रस्ताव” रखना पड़ा।

33. (क) एन्टियोकस III और टॉल्मी V के बीच क्या समझौता हुआ? (ख) क्लियोपेट्रा I और टॉल्मी V की शादी के पीछे क्या चाल थी और यह चाल नाकाम क्यों हुई?

33 रोम के दबाव में आकर एन्टियोकस III मजबूर ज़रूर हुआ था और दक्खिन के राजा टॉल्मी V के पास शांति का प्रस्ताव लेकर भी गया। लेकिन उसने रोम के कहे मुताबिक, जीते हुए इलाकों को लौटाने के बजाय सिर्फ नाम की खातिर ऐसा करने का ऐलान किया था। उसने पेशकश रखी कि वह “एक युवती देगा” यानी अपनी बेटी क्लियोपेट्रा I की शादी टॉल्मी V से करेगा और उसके दहेज के रूप में उन इलाकों को वापस लौटाएगा। जो इलाके दहेज में दिए जाने थे उनमें “शिरोमणि देश” यहूदा भी शामिल था। लेकिन सा.यु.पू. 193 में शादी के ऐन मौके पर सीरिया के राजा ने टॉल्मी V को ये प्रांत देने से इंकार कर दिया। यह शादी तो उसकी एक राजनैतिक चाल थी। असल में वह इस शादी के ज़रिए मिस्र को सीरिया के अधीन करना चाहता था। लेकिन उसकी यह चाल नाकाम रही क्योंकि उसकी अपनी बेटी, क्लियोपेट्रा I ‘स्थिर न रही’ और उसने अपने पिता का साथ देने के बजाय अपने पति का साथ दिया। और जब एन्टियोकस III और रोम के बीच युद्ध छिड़ा तब मिस्र ने रोम का साथ दिया।

34, 35. (क) उत्तर का राजा किन “द्वीपों” की ओर फिरा? (ख) किस तरह रोम ने उत्तर के राजा का “पलटा उसी के ऊपर डाल” दिया? (ग) एन्टियोकस III की मौत कैसे हुई और उसके बाद उत्तर का राजा कौन बना?

34 उत्तर के राजा के खिलाफ इस तरह पासा पलटने के बारे में स्वर्गदूत आगे बताता है: “तब वह [एन्टियोकस III] द्वीपों की ओर फिरकर बहुतों को ले लेगा, परन्तु एक सेनापति [रोम] उसके इस अहंकार को मिटाकर उसका पलटा उसी [एन्टियोकस III] के ऊपर डाल देगा। तब वह [एन्टियोकस III] अपने देश के किलों की ओर मुंह फेरेगा पर ठोकर खाकर गिरेगा और उसका कोई पता न चलेगा।”—दानिय्येल 11:18, 19, NHT.

35 इस भविष्यवाणी में जिन “द्वीपों” की बात की गई है वे मकिदुनिया, ग्रीस और एशिया माइनर के द्वीप थे जिन पर एन्टियोकस III ने कब्ज़ा कर लिया था। ऐसा हुआ कि सा.यु.पू. 192 में यूनान में लड़ाई छिड़ गयी और एन्टियोकस III को अपनी फौज के साथ वहाँ आने के लिए राज़ी कर लिया गया। वहाँ उसने कई इलाकों पर कब्ज़ा करने की कोशिश की। यह देखकर कि सीरिया का राजा अपने इलाके बढ़ाता जा रहा है, रोम को गुस्सा आ गया इसलिए उसने एन्टियोकस III के साथ जंग का ऐलान कर दिया। थर्मोपाइली में रोम ने उससे लोहा लिया और उसे करारी हार का मज़ा चखाया। फिर सा.यु.पू. 190 में भी इफिसुस के पास मैगनिसिया में रोम ने उसे एक और युद्ध में बुरी तरह हरा दिया। इसके एक साल बाद रोम ने उसे वे सारे इलाके वापस देने पर मज़बूर किया जो उसने ग्रीस, एशिया माइनर और टोरस पहाड़ों के पश्‍चिम में जीते थे। इतना ही नहीं, रोम ने उस पर बहुत भारी जुर्माना लगाया। रोम ने अपनी ताकत से उत्तर के राजा को दबा दिया। एन्टियोकस III को यूनान और एशिया माइनर से खदेड़ दिया गया था और उसके लगभग सभी समुद्री बेड़े खत्म हो गए थे। इसलिए उसे मजबूर होकर अपने देश सीरिया के ‘किलों की ओर मुंह फेरना’ पड़ा। रोम ने ‘उसके अहंकार को मिटाकर उसका पलटा उसी के ऊपर डाल दिया’ था। इसके बाद सा.यु.पू. 187 में एन्टियोकस III फारस के एलिमेस में एक मंदिर को लूटते वक्‍त मारा गया। इस तरह वह ‘गिर’ गया और उसकी मौत के बाद उसका बेटा सेल्युकस IV राजगद्दी पर बैठा। अब वह उत्तर का राजा था।

संघर्ष जारी रहता है

36. (क) दक्खिन के राजा, टॉल्मी V की किस कोशिश से उत्तर के राजा के खिलाफ उसका संघर्ष जारी रहता, लेकिन उसका क्या हश्र हुआ? (ख) उत्तर के राजा, सेल्युकस IV की मौत कैसे हुई और उसकी जगह कौन राजा बना?

36 उधर दक्खिन का राजा टॉल्मी V युद्ध करके उन इलाकों पर कब्ज़ा करना चाहता था जो उसे क्लियोपेट्रा के दहेज में मिलनेवाले थे। लेकिन उसकी सारी तैयारियाँ धरी की धरी रह गयीं, क्योंकि उसे ज़हर देकर मार दिया गया। उसकी जगह टॉल्मी VI राजा बना। लेकिन दूसरी तरफ, उत्तर के राजा सेल्युकस IV का क्या हुआ? रोम ने उसके पिता पर जो भारी जुर्माना किया था उसे चुकाने के लिए उसने अपने खजाँची हीलियोडोरस को यरूशलेम भेजा। क्योंकि उसने सुना था कि यरूशलेम के मंदिर में बहुत बड़ा खज़ाना है। हीलियोडोरस ने सेल्युकस IV का कत्ल कर दिया क्योंकि वह खुद सीरिया का राजा बनना चाहता था। मगर परगमम के राजा यूमनीज़ और उसके भाई अटलिस ने हीलियोडोरस के इरादों पर पानी फेर दिया और उन्होंने सेल्युकस IV के भाई एन्टियोकस IV को सीरिया की राजगद्दी पर बिठा दिया। अब एन्टियोकस IV उत्तर का राजा था।

37. (क) कैसे एन्टियोकस IV ने खुद को यहोवा परमेश्‍वर से भी ज़्यादा ताकतवर साबित करने की कोशिश की? (ख) जब एन्टियोकस IV ने यरूशलेम के मंदिर को अपवित्र किया तो उसका क्या अंजाम हुआ?

37 उत्तर के नए राजा एन्टियोकस IV ने खुद को परमेश्‍वर से भी ज़्यादा ताकतवर साबित करने की कोशिश की। उसने यरूशलेम में से यहोवा की उपासना के इंतज़ाम को मिटाने की जुर्रत की। यहोवा परमेश्‍वर की तौहीन करते हुए उसने यरूशलेम का मंदिर यूनानी देवता ज़ियस या जुपिटर को समर्पित कर दिया। सा.यु.पू. 167 के दिसंबर में, यरूशलेम के मंदिर की उस बड़ी वेदी के ऊपर, जहाँ हर दिन यहोवा के लिए होमबलि चढ़ाई जाती थी उसने एक और वेदी खड़ी करवा दी। दस दिन बाद, झूठी उपासना के लिए बनी इसी वेदी पर देवता ज़ियस के लिए बलिदान चढ़ाया गया। मंदिर को इस तरह अपवित्र होता हुआ देखकर, यहूदियों ने मक्काबियों के साथ मिलकर विद्रोह कर दिया। एन्टियोकस IV ने उनसे तीन साल तक लड़ाई की। लेकिन जिस दिन मंदिर अपवित्र किया गया था उसके तीन साल बाद ठीक उसी दिन, सा.यु.पू. 164 में विद्रोही यहूदियों के नेता जूडस मकाबीयस ने यरूशलेम के मंदिर को पवित्र करके उसे दोबारा यहोवा को समर्पित कर दिया। इस घटना से स्थापन-पर्व या हनूक्का की शुरूआत हुई।—यूहन्‍ना 10:22.

38. मक्काबियों का राज किस तरह खत्म हो गया?

38 माना जाता है कि इन मक्काबियों ने सीरिया से छुटकारा पाने के लिए सा.यु.पू. 161 में रोम के साथ समझौता कर लिया था। लेकिन, ये मक्काबी एक आज़ाद यहूदी राज्य की शुरूआत करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने सा.यु.पू. 104 में अपने राज्य की शुरूआत की। लेकिन उन्हें उत्तर के राजा सीरिया से लगातार युद्ध करते रहना पड़ा। इसके अलावा, यहूदियों के आपसी झगड़ों की वज़ह से रोम को दखल देना पड़ा। सा.यु.पू. 63 में रोमी जनरल नायुस पॉम्पी ने यरूशलेम को तीन महीने के घेराव के बाद अपने कब्ज़े में ले लिया। यहूदा को रोमी साम्राज्य का एक प्रांत बना दिया गया। सा.यु.पू. 39 में रोम की सीनेट (शासी सभा) ने एदोमी हेरोद को यहूदिया का राजा बना दिया। इसके बाद सा.यु.पू. 37 में हेरोद ने यरूशलेम में घुसकर उसे जीत लिया और मक्काबियों का राज्य खत्म कर दिया।

39. दानिय्येल 11:1-19 की जाँच करने से आपको क्या लाभ हुआ?

39 यह देखकर हम दंग रह जाते हैं कि किस तरह उत्तर और दक्खिन के राजाओं के बीच चलनेवाले संघर्ष की भविष्यवाणी के पहले हिस्से की एक-एक बात पूरी हुई है! जब हमने दानिय्येल की इस भविष्यवाणी के पहले 500 सालों के इतिहास का सफर किया तो यह जानकर हम कितने हैरान रह गए कि इस दौरान किन-किन राजाओं ने उत्तर के राजा और दक्खिन के राजा की जगह ली! हमें यह भी पता चला कि अलग-अलग राजा और अलग-अलग राजनैतिक शक्‍तियाँ इन दोनों की जगह लेती रहतीं। इसलिए ये राजा और इनके देश बदलते रहते। जब यीशु मसीह ज़िंदा था तब भी इन राजाओं के बीच का संघर्ष जारी था और आज हमारे समय तक जारी है। इसलिए अगर हम इतिहास की घटनाओं को इस अचूक भविष्यवाणी में दी गयी ब्यौरेवार जानकारी से मिलाएँ तो हम यीशु मसीह के समय से लेकर हमारे ज़माने तक उत्तर और दक्खिन के राजा की पहचान कर सकते हैं।

आपने क्या समझा?

• सिकंदर के साम्राज्य से कौन-से दो शक्‍तिशाली राजवंश निकले और इन राजाओं ने कौन-सा संघर्ष शुरू किया?

• जैसा दानिय्येल 11:6 में भविष्यवाणी में बताया गया था इन दो दुश्‍मन राजाओं ने कैसे आपस में एक ‘वाचा बान्धी’?

• इनके बीच संघर्ष कैसे जारी रहा

सेल्युकस II और टॉल्मी III (दानिय्येल 11:7-9)?

एन्टियोकस III और टॉल्मी IV (दानिय्येल 11:10-12)?

एन्टियोकस III और टॉल्मी V (दानिय्येल 11:13-16)?

• क्लियोपेट्रा I और टॉल्मी V की शादी के पीछे क्या चाल थी और यह चाल नाकाम क्यों हुई (दानिय्येल 11:17-19)?

दानिय्येल 11:1-19 पर ध्यान देने से आपको कैसे लाभ हुआ है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 228 पर चार्ट/तसवीरें]

दानिय्येल 11:5-19 के राजा

उत्तर देश दक्खिन देश

का राजा का राजा

दानिय्येल 11:5 सेल्युकस I निकेटोर टॉल्मी I

दानिय्येल 11:6 एन्टियोकस II टॉल्मी II

(पत्नी लाओदिस) (बेटी बरनिसी)

दानिय्येल 11:7-9 सेल्युकस II टॉल्मी III

दानिय्येल 11:10-12 एन्टियोकस III टॉल्मी IV

दानिय्येल 11:13-19 एन्टियोकस III टॉल्मी V

(बेटी क्लियोपेट्रा I) उत्तराधिकारी:

उत्तराधिकारी: टॉल्मी VI

सेल्युकस IV और

एन्टियोकस IV

[तसवीर]

सिक्का जिस पर टॉल्मी II और उसकी पत्नी का चित्र है

[तसवीर]

सेल्युकस I निकेटोर

[तसवीर]

एन्टियोकस III

[तसवीर]

टॉल्मी VI

[तसवीर]

टॉल्मी III और उसके उत्तराधिकारियों ने अपर इजिप्ट के इदफू में होरस देवता का यह मंदिर बनवाया

[पेज 216 पर नक्शा/तसवीर]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

‘उत्तर देश का राजा’ दानिय्येल के लोगों के देश, यहूदा के उत्तर में था और ‘दक्खिन देश का राजा’ यहूदा के दक्षिण में था

मकिदुनिया

यूनान (ग्रीस)

एशिया माइनर

इस्राएल

लिबिया

मिस्र (इजिप्ट)

इथियोपिया

सीरिया

बाबुल

अरेबिया

[तसवीर]

टॉल्मी II

[तसवीर]

एन्टियोकस महान

[तसवीर]

पत्थर की पटिया जिस पर एन्टियोकस महान के सरकारी फरमान लिखे हैं

[तसवीर]

सिक्का जिसमें टॉल्मी V का चित्र है

[तसवीर]

कारनक, इजिप्ट में टॉल्मी III का फाटक

[पेज 210 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]

[पेज 215 पर तसवीर]

सेल्युकस I निकेटोर

[पेज 218 पर तसवीर]

टॉल्मी I