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आओ चलें कज़ाकिस्तान!

आओ चलें कज़ाकिस्तान!

कज़ाकिस्तान के लोग पहले खानाबदोश की ज़िंदगी जीते थे। आज भी वहाँ मवेशी पालनेवाले कुछ लोग मौसम के हिसाब से अपने जानवरों को अलग-अलग इलाकों में चराने ले जाते हैं। वे गरमियों में ऊँचे इलाकों में जाते हैं, जो ठंडे होते हैं और जब सर्दियों में बर्फ पड़नेवाली होती है, तब वे निचले इलाकों में आ जाते हैं।

कज़ाकिस्तान के लोग बड़े-बड़े शहरों में भी रहते हैं। यहाँ भी उनके रीति-रिवाज़ों, खाने और कला-कृतियों में उनके पुरखाओं की खानाबदोश ज़िंदगी की झलक मिलती है। लोक-गीत गाना, कविताएँ सुनना-सुनाना और यहाँ पाए जानेवाले संगीत के साज़ पर धुन बजाना लोगों की परंपरा है।

यहाँ के खानाबदोश लोग यर्ट (एक किस्म के तंबू) में रहते आए हैं, जिसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। यह उन लोगों की पहचान बन गया है, जो प्राकृतिक वातावरण के हिसाब से जीते हैं। चरवाहे आज भी यर्ट में रहना पसंद करते हैं और शहरों में रहनेवाले लोग खास मौकों पर इनमें रहते हैं। यहाँ घूमने-फिरने आए लोगों के रहने के लिए भी यर्ट अच्छी जगह है। यर्ट के अंदर की सजावट से झलकता है कि कज़ाकिस्तान की औरतें अलग-अलग तरह की कढ़ाई-बुनाई करने और कालीन बनाने में बहुत माहिर हैं।

यर्ट के अंदर

कज़ाकिस्तान के गाँव में रहनेवालों को अपने घोड़ों से बहुत लगाव होता है। कज़ाख भाषा में घोड़ों के लिए कम-से-कम 21 शब्द हैं। हर शब्द से घोड़े की एक खासियत पता चलती है। घोड़ों की अलग-अलग रंग की पीठ के लिए 30 से भी ज़्यादा शब्द हैं। तोहफे में दिया गया अच्छा घोड़ा आज भी बहुत अनमोल समझा जाता है। गाँवों में लड़के छोटी उम्र से ही घुड़सवारी सीखते हैं।

कज़ाकिस्तान में लोग ज़्यादातर गोश्त खाते हैं, जो ज़्यादा मसालेदार नहीं होता। यहाँ के लोग कुमिस और शुबत पीना पसंद करते हैं। कुमिस घोड़ी के दूध से बना एक पेय है, जो सेहत के लिए अच्छा माना जाता है। शुबत थोड़ा खट्टा होता है और यह ऊँटनी के दूध से बनाया जाता है।

अलमाती में यहोवा के साक्षियों का शाखा दफ्तर है। यहाँ जो लोग आते हैं, उनका स्वागत किया जाता है और उन्हें शाखा दफ्तर दिखाया जाता है।

छिपकर रहनेवाला हिम तेंदुआ गरमियों में कज़ाकिस्तान के ऊँचे पहाड़ों पर चला जाता है