नीतिवचन 1:1-33
1 दाविद के बेटे और इसराएल के राजा, सुलैमान+ के नीतिवचन,+
2 जिनसे इंसान बुद्धि+ और शिक्षा पाएगा,बुद्धि की बातें समझेगा,
3 ऐसी शिक्षा पाएगा+ जो उसे अंदरूनी समझ देगी,नेकी+ और सीधाई से चलने और सही फैसले लेने*+ में उसे मदद देगी।
4 ये नादानों को होशियार बनाएँगे,+जवानों को ज्ञान और सोचने-परखने की शक्ति देंगे।+
5 बुद्धिमान सुनकर और ज़्यादा सीखेगा,+समझ रखनेवाला, सही मार्गदर्शन* पाएगा+
6 ताकि नीतिवचन और मिसालें* समझ सके,बुद्धिमानों की बातें और उनकी पहेलियाँ बूझ सके।+
7 यहोवा का डर मानना,* ज्ञान पाने की शुरूआत है।+
मूर्ख ही बुद्धि और शिक्षा को तुच्छ समझता है।+
8 हे मेरे बेटे, अपने पिता की शिक्षा पर ध्यान दे+और अपनी माँ से मिलनेवाली सीख को मत ठुकरा।+
9 उनकी बातें तेरे सिर पर खूबसूरत ताज+और तेरे गले का कीमती हार बनेंगी।+
10 हे मेरे बेटे, उन पापियों की बातों में न आना, जो तुझे फुसलाते हैं+
11 और कहते हैं, “आ, हमारे साथ चल!
खून करने के लिए हम घात लगाएँगे,छिपकर मासूमों पर हमला करेंगे।
12 उन्हें निगल जाएँगे जैसे कब्र ज़िंदा लोगों को निगल जाती है,हाँ, साबुत निगल जाएँगे।
13 उनकी सारी कीमती चीज़ें छीन लेंगे,लूट के माल से अपना घर भर लेंगे।
14 हमारे साथ चल तो सही,चोरी का माल हम बराबर बाँट लेंगे।”*
15 हे मेरे बेटे, उनके पीछे मत जाना,
उनकी राहों से दूर रहना।+
16 क्योंकि उनके पैर बुराई करने को दौड़ते हैं,वे लोग खून बहाने के लिए फुर्ती करते हैं।+
17 चिड़िया की आँखों के सामने जाल बिछाना बेकार है,
18 इसीलिए दुष्ट, खून करने के लिए घात लगाते हैंलोगों की जान लेने के लिए छिपकर बैठते हैं।
19 बेईमानी की कमाई करनेवाले यही रास्ता अपनाते हैंऔर इस तरह वे अपनी जान गँवा बैठते हैं।+
20 सच्ची बुद्धि+ सड़कों पर पुकारती है,+
चौराहों पर उसकी आवाज़ गूँजती है,+
21 चहल-पहलवाले नुक्कड़ पर वह आवाज़ लगाती है,
शहर के फाटकों पर कहती है,+
22 “ऐ नादानो, तुम कब तक नादानी से लिपटे रहोगे?
ऐ खिल्ली उड़ानेवालो, तुम कब तक खिल्ली उड़ाने का मज़ा लोगे?
ऐ मूर्खो, तुम कब तक ज्ञान से नफरत करोगे?+
23 मेरी डाँट सुनकर सुधरो,*+
तब मेरे सोते तुम्हारे लिए फूट पड़ेंगेऔर मैं तुम्हें अपनी बातें बताऊँगी।+
24 मैंने बार-बार पुकारा पर तुमने सुनने से इनकार कर दिया,मैंने हाथ से इशारा किया, मगर किसी ने ध्यान नहीं दिया,+
25 मेरी सलाह को तुम अनसुना करते रहे,जब मैंने डाँट लगाकर तुम्हें सुधारना चाहा,तो तुमने इसे ठुकरा दिया,
26 इसलिए जब विपत्ति तुम पर टूट पड़ेगी तो मैं हँसूँगी,जिसका तुम्हें डर है, जब वह तुम पर आ पड़ेगा तो मैं मज़ाक उड़ाऊँगी।+
27 जब वह डर तूफान की तरह तुम पर छा जाएगा,विपत्ति ज़ोरदार आँधी की तरह तुम पर टूट पड़ेगी,संकट और मुसीबतें तुम्हें आ घेरेंगी, तब मैं हँसूँगी।
28 उस वक्त वे रह-रहकर मुझे पुकारेंगे, मगर मैं कोई जवाब नहीं दूँगी,मुझे यहाँ-वहाँ ढूँढ़ेंगे मगर मैं न मिलूँगी+
29 क्योंकि उन्होंने ज्ञान से नफरत की,+यहोवा का डर मानना उन्हें रास नहीं आया।+
30 उन्होंने मेरी सलाह ठुकरा दी,जब-जब मैंने डाँट लगायी, उन्होंने इसकी कदर नहीं की।
31 इसलिए वे अपने कामों का फल पाएँगे,+अपनी साज़िशों का पूरा-पूरा अंजाम भुगतेंगे।*
32 मुझसे मुँह मोड़कर नादान अपनी जान गँवा बैठता है,मूर्खों का बेफिक्र रवैया उन्हें तबाह कर देता है।
33 लेकिन जो मेरी सुनता है वह बेखौफ जीएगा,+उसे विपत्ति का डर नहीं सताएगा।”+
कई फुटनोट
^ या “और न्याय करने।”
^ या “बुद्धि-भरी सलाह।”
^ या “सोच में डालनेवाली कहावतें।”
^ या “के लिए गहरी श्रद्धा।”
^ या “हम सबकी एक ही थैली (या बटुआ) होगी।”
^ या “लौट आओ।”
^ या “से अघा जाएँगे।”