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गीत १०५

“देव प्रेम आहे”

“देव प्रेम आहे”

(१ योहान ४:७, ८)

  1. १. प्रे-मा-चे स्व-रू-प दे-व,

    प्रे-मा-ने आ-म्हा सां-गे,

    ‘बां-ध-वां क-रु-नी प्री-ती,

    व्हा मा-झी प्रि-य मु-ले.’

    दा-ख-वू या स-र्वां आ-पण,

    स-दा प्रे-म या-हा-चे.

    गू-ज हे ख-ऱ्‍या सु-खा-चे,

    गू-ज हे स-फल-ते-चे!

  2. २. प्री-ती न-म्र, नी-ति-वं-त,

    ती सा-रे स-हन क-री.

    न हे-वा क-रे क-धी-ही,

    तीच अ-से ख-री प्री-ती.

    दे-व-प्री-ती-ची अ-क्ष-रे,

    गि-र-वू या जी-व-नी.

    चुक-लो न-क-ळत त-री, तो

    प्रे-मा-ने पु-न्हा शिक-वी.

  3. ३. रा-गा द्वे-षा-ची जळ-म-टे,

    का-ढु-नी म-ना-तु-नी.

    प्रे-मा-चा सु-गं-ध सा-ऱ्‍या,

    दर-व-ळा-वा जी-व-नी.

    दे-वा-वर नि बां-ध-वां-वर,

    क-रु-नी ख-री प्री-ती,

    ओ-ळ-खेल आ-म्हा सा-रे जग,

    या निः-स्वा-र्थ प्रे-मा-ने.