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किसे कहते हैं सच्ची कामयाबी?

किसे कहते हैं सच्ची कामयाबी?

किसे कहते हैं सच्ची कामयाबी?

करीब 20 साल की उम्र में उसने संगीत की दुनिया में अपना एक मुकाम बना लिया था। यही नहीं, दौलत के नाम पर उसके पास सबकुछ था। दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग होते हैं, जो इतनी कम उम्र में कामयाबी की बुलंदियाँ छू पाते हैं। मगर फिर उसकी ज़िंदगी बरबादी की तरफ बढ़ने लगी। उसने दो शादियाँ कीं, मगर दोनों ही टूट गयीं। इसके बाद, उसे शराब और ड्रग्स की ऐसी लत लगी कि उससे छुटकारा पाने के लिए उसे कई सुधार-केंद्रों में रहना पड़ा।

अफसोस, इस लड़की के साथ जो हुआ, वह कोई नयी बात नहीं है। बड़ी-बड़ी हस्तियों की दर्द-भरी दास्तानें अकसर अखबार की सुर्खियाँ बनती हैं। यहाँ तक कि ऐसे नामी-गिरामी बिज़नेसमैनों की ज़िंदगी भी समस्याओं से भरी होती है, जिनका कारोबार पुश्‍तों से चला आ रहा है। एक बार न्यू यॉर्क में एक अखबार ने व्यापार जगत के दिग्गजों के बारे में कहा: “ज़्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में वे अपना करियर बरबाद कर लेते हैं, अपने हाथों ही अपना परिवार तबाह कर देते हैं और ड्रग्स का नशा करने लगते हैं। . . . अमरीकी शेयर बाज़ार के कुछ बैंकरों को जब बँधी तनख्वाह के साथ-साथ बोनस मिलता है, तो उन्हें ऐसा लगता है मानो उन्होंने कोई फतह हासिल कर ली हो। जबकि दूसरे, तरक्की करने के दबाव में या तो बौखला जाते हैं या फिर निराशा के घुप अँधेरे में खो जाते हैं।”

क्या ये समस्याएँ इसलिए आती हैं, क्योंकि लोग खुशी और कामयाबी पाने के लिए गलत चीज़ों के पीछे भागते हैं? यह सच है कि जीने के लिए हमें पैसों की ज़रूरत है। लेकिन क्या हमारे पास ढेर सारा पैसा होगा, तभी हम कामयाब इंसान कहलाएँगे? जी नहीं। अध्ययन कुछ और ही बताते हैं। मिसाल के लिए, चीन में लिए गए एक अध्ययन के मुताबिक, हाल ही में जहाँ लोगों की आमदनी 250 प्रतिशत बढ़ी है, वहीं उनकी खुशी काफी हद तक कम हो गयी है।

इससे साफ है कि एक व्यक्‍ति की कामयाबी उन बातों से नहीं आँकी जाती, जो लोगों को साफ नज़र आती हैं। जैसे, उसकी अच्छी-खासी नौकरी, बड़ा बँगला, महँगी कार और दामी घड़ी। इसके बजाय, उसकी कामयाबी इस बात से आँकी जाती है कि वह अंदर से कैसा इंसान है, किन सिद्धांतों पर चलता है और उसके जीने का मकसद क्या है। मिसाल के लिए, एक इंसान दिखने में कितना ही होशियार और चुस्त-फुर्तीला क्यों न हो, मगर हो सकता है वह बदचलन ज़िंदगी जीता हो, उसमें प्यार नाम की चीज़ ही न हो और उसका एक भी सच्चा दोस्त न हो। दूसरे शायद ऐसे हों, जो खूब दौलत और शोहरत कमाने के बाद भी अपने अंदर खालीपन महसूस करते हैं। वे शायद खुद से सवाल करें, ‘आखिर मैंने यह सब किस लिए कमाया? मेरी ज़िंदगी का मकसद क्या है?’

इन सारी बातों के मद्देनज़र, धन-दौलत और रुतबा हासिल करने से एक इंसान कामयाब नहीं हो जाता; बल्कि कामयाब इंसान उसे कहते हैं, जो सही सिद्धांतों पर चलता है। नतीजा, उसे मन की शांति मिलती है, वह अपना आत्म-सम्मान बनाए रखता है और दूसरे भी उसका आदर करते हैं। इतना ही नहीं, उसकी ज़िंदगी में एक बढ़िया मकसद होता है, जो उसे खुद के बजाय दूसरों की भलाई करने के लिए उकसाता है। और ऐसा करने पर उसे संतोष मिलता है। लेकिन कुछ लोग शायद पूछें, ‘आखिर वे कौन-से सिद्धांत हैं? और वह मकसद क्या है?’ क्या हम इन सवालों के जवाब अपने अंदर झाँककर पा सकते हैं? या क्या हमें किसी और की मदद लेने की ज़रूरत है? यह जानने के लिए आइए अगला लेख देखें। (g 11/08)

[पेज 3 पर बक्स]

कामयाबी के बारे में गलत नज़रिया

चिकित्सा-क्षेत्र के खोजकर्ताओं का कहना है कि आज ज़्यादा-से-ज़्यादा जवान खिलाड़ी, खेल में अव्वल आने के लिए ऐसे स्टेरॉइड (फौरन ताकत देनेवाली ड्रग्स) ले रहे हैं, जिनसे उनकी सेहत पर बन आती है। इंटरनेट पर उपलब्ध किताब, एजुकेशन अपडेट कहती है: “हाल के एक सर्वे में कॉलेज के विद्यार्थियों से पूछा गया, ‘अगर आपको मालूम हो कि स्टेरॉइड लेने से आप खेल जीत जाएँगे या आपको टीम में शामिल कर लिया जाएगा, मगर पाँच साल में आप बीमार हो जाएँगे, तो क्या आप स्टेरॉइड लेंगे?’ इस पर लगभग सभी ने ‘हाँ’ कहा। लेकिन जब यही सवाल थोड़ा बदलकर पूछा गया, ‘अगर आपको मालूम हो कि स्टेरॉइड लेने से पाँच साल में आपकी मौत हो जाएगी, क्या आप फिर भी स्टेरॉइड लेंगे?’ तो 65 प्रतिशत जवानों ने जवाब दिया कि हाँ, वे स्टेरॉइड लेंगे।”