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यीशु कब पैदा हुआ था?

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बाइबल क्या कहती है?

यीशु कब पैदा हुआ था?

शुरूआत की मसीहियत का विश्‍वकोश (अँग्रेज़ी) में लिखा है: “किसी को भी मसीह के जन्म की सही-सही तारीख नहीं पता।” फिर भी, पूरी दुनिया में मसीही होने का दम भरनेवाले लाखों लोग, हर साल 25 दिसंबर को यीशु का जन्मदिन मनाते हैं। जबकि देखा जाए तो यह तारीख बाइबल में कहीं नहीं दी गयी है। अब सवाल है, क्या यीशु सचमुच दिसंबर में पैदा हुआ था?

हालाँकि बाइबल, यीशु के जन्म की तारीख नहीं बताती, मगर यह ऐसे ढेरों सबूत ज़रूर देती है कि वह दिसंबर में नहीं पैदा हुआ था। इसके अलावा, दूसरी किताबें भी हमें बताती हैं कि यीशु का जन्मदिन मनाने के लिए 25 दिसंबर की तारीख क्यों चुनी गयी थी।

हम यह कैसे कह सकते हैं कि यीशु दिसंबर में नहीं पैदा हुआ था?

यीशु, यहूदा ज़िला के बेतलेहेम नगर में पैदा हुआ था। बाइबल की सुसमाचार की किताब, लूका कहती है: “उस देश में कितने गड़ेरिये थे, जो रात को मैदान में रहकर अपने झुण्ड को पहरा देते थे।” (लूका 2:4-8) यह कोई अनोखी बात नहीं थी। यीशु के ज़माने में रोज़मर्रा ज़िंदगी (अँग्रेज़ी) किताब कहती है: “भेड़ों के झुंड साल के ज़्यादातर समय खुले मैदान में रहते थे।” मगर क्या ऐसा हो सकता है कि दिसंबर में जब कड़ाके की ठंड पड़ती है, तब चरवाहे अपने झुंडों के साथ मैदान में हों? वही किताब आगे कहती है: “[भेड़ों के झुंड] जाड़ों में अंदर ही रहते थे; इसी एक बात से देखा जा सकता है कि जाड़ों में क्रिसमस की पारंपरिक तारीख सही नहीं हो सकती, क्योंकि सुसमाचार की किताब कहती है कि उस वक्‍त चरवाहे मैदानों में अपने झुंडों के साथ थे।”

यह बात, लूका की किताब में दी एक और बारीक जानकारी से पुख्ता होती है: “उन दिनों में औगूस्तुस कैसर की ओर से आज्ञा निकली, कि सारे जगत के लोगों के नाम लिखे जाएं यह पहिली नाम लिखाई उस समय हुई, जब क्विरिनियुस सूरिया का हाकिम था। और सब लोग नाम लिखवाने के लिये अपने अपने नगर को गए।”—लूका 2:1-3.

औगूस्तुस ने नाम लिखाई की आज्ञा शायद इसलिए दी, ताकि प्रजा की गिनती की जा सके। फिर इस जानकारी की बिनाह पर उनसे कर लिया जाता और लोगों को फौज में भरती किया जाता। हालाँकि मरियम पूरे दिनों की गर्भवती थी, फिर भी औगूस्तुस का हुक्म मानते हुए वह अपने पति यूसुफ के साथ नासरत से 150 किलोमीटर का लंबा सफर तय करके बेतलेहेम गयी। अब ज़रा सोचिए: क्या इसमें कोई तुक बनता है कि औगूस्तुस, जो कभी इलाके की सरकार में दखल नहीं देता था, ठंडी के मौसम में यहूदी लोगों को लंबा सफर तय करने की आज्ञा देता, जो पहले से रोमी सरकार के खिलाफ बगावत करने पर अमादा थे?

गौरतलब बात तो यह है कि ज़्यादातर इतिहासकार और बाइबल विद्धान भी नहीं मानते कि यीशु 25 दिसंबर को पैदा हुआ था। इसमें कोई शक नहीं कि अगर आपके पास कोई विश्‍वकोश है, तो आपको यह जानकारी उसमें ज़रूर मिलेगी। मिसाल के लिए, आर्‌ सन्डे विज़िटर्स कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया कहती है: “लगभग सभी का मानना है कि यीशु का जन्म 25 दिसंबर को नहीं हुआ था।”

आखिर, 25 दिसंबर क्यों चुना गया?

यीशु के मरने के सदियों बाद, 25 दिसंबर की तारीख उसके जन्मदिन के तौर पर चुनी गयी। क्यों? कई इतिहासकारों का मानना है कि क्रिसमस मनाने के लिए साल का जो समय चुना गया, उस समय दरअसल झूठे धर्मों के त्योहार मनाए जाते थे।

उदाहरण के लिए, इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका कहती है: “25 दिसंबर की तारीख ही क्यों चुनी गयी, इसका एक जाना-माना जवाब है कि ईसाइयों ने इसी दिन को डीएस सोलीस इनविकटीनाटी (‘अजेय सूर्य का जन्मदिन’) नाम का त्योहार अपनाया था। यह रोमी साम्राज्य का एक बहुत ही मशहूर त्योहार था, जो दिसंबर अयनांत (यानी 21 दिसंबर के आस-पास) को मनाया जाता था। रोमी लोगों का मानना था कि इस दिन सूरज अपनी लंबी यात्रा से लौट आता है, जिससे ठंडी के मौसम के बीतने और बहार और गर्मी के मौसम के आने का पैगाम मिलता है।”

इनसाइक्लोपीडिया अमेरिकाना बताती है: “क्रिसमस मनाने के लिए 25 दिसंबर का दिन ही क्यों चुना गया, इस बारे में किसी को साफ जानकारी नहीं है। फिर भी, आम तौर पर माना जाता है कि यह तारीख इसलिए चुनी गयी ताकि यह झूठे धर्मों के उन त्योहारों से मेल खाए जो दिसंबर अयनांत के आस-पास मनाए जाते थे, जब से दिन लंबे होने लगते हैं। ये त्योहार ‘सूर्य के पुनर्जन्म’ के तौर पर मनाए जाते थे। . . . यही नहीं, ‘रोमन सैटरननेलिया’ नाम का त्योहार भी उसी दौरान मनाया जाता था। (यह त्योहार कृषि-देवता, सैटर्न के सम्मान में मनाया जाता था। साथ ही, इस खुशी में भी कि सूरज दोबारा नयी ताकत से वापस आ रहा है।)” इन त्योहारों के दौरान, अकसर जश्‍न मनानेवाले अनैतिक कामों में हिस्सा लेते थे और बेलगाम रंग-रलियाँ मनाते थे। गौर करने लायक बात यह है कि आज भी जब क्रिसमस मनाया जाता है, तो उसमें इसी तरह की बातें देखने को मिलती हैं।

मसीह का आदर कैसे किया जाना चाहिए?

कुछ लोगों का मानना है कि हालाँकि किसी को यीशु के पैदा होने की तारीख नहीं मालूम, फिर भी मसीहियों को उसका जन्मदिन मनाना चाहिए। उन्हें लगता है कि अगर इस तरह का बड़ा दिन सही ढंग से मनाया जाए, तो हम मसीह का आदर कर रहे होते हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि बाइबल बताती है कि यीशु का जन्मदिन एक बहुत ही खास घटना थी। बाइबल कहती है कि जब यीशु पैदा हुआ, तो अचानक अनगिनत स्वर्गदूत नज़र आए और वे परमेश्‍वर की जयजयकार करने लगे। उन्होंने कहा: “आकाश में परमेश्‍वर की महिमा और पृथ्वी पर उन मनुष्यों में जिनसे वह प्रसन्‍न है शान्ति हो।” (लूका 2:13,14) मगर गौर कीजिए कि बाइबल में कहीं पर भी यह इशारा नहीं किया गया है कि हमें यीशु का जन्मदिन मनाना चाहिए। इसके बिलकुल उलट, हमें साफ-साफ आज्ञा दी गयी है कि हम उसकी मौत की यादगार मनाएँ। (लूका 22:19) और यह समारोह, यहोवा के साक्षी साल में एक बार ज़रूर मनाते हैं। यीशु का आदर करने का यह एक तरीका है।

धरती पर अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात यीशु ने कहा: “जो कुछ मैं तुम्हें आज्ञा देता हूं, यदि उसे करो, तो तुम मेरे मित्र हो।” (यूहन्‍ना 15:14) उसने यह भी कहा: “यदि तुम मुझ से प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे।” (यूहन्‍ना 14:15) इन आयतों से साफ है कि यीशु मसीह का आदर करने का सबसे बढ़िया तरीका है, उसकी शिक्षाओं के बारे में सीखना और उन्हें अपनी ज़िंदगी में लागू करना। (g 12/08)

क्या आपने कभी सोचा है?

◼ हम यह कैसे कह सकते हैं कि यीशु दिसंबर में नहीं पैदा हुआ था?—लूका 2:1-8.

◼ एक इंसान का कौन-सा दिन जन्मदिन से बढ़कर होता है?—सभोपदेशक 7:1.

◼ यीशु का आदर करने का सबसे बढ़िया तरीका क्या है?—यूहन्‍ना 14:15.

[पेज 20 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

बाइबल इस बात के ढेरों सबूत देती है कि यीशु दिसंबर में नहीं पैदा हुआ था