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चीज़ों के ज़रिए उपासना करना—परमेश्‍वर का क्या नज़रिया है?

चीज़ों के ज़रिए उपासना करना—परमेश्‍वर का क्या नज़रिया है?

बाइबल क्या कहती है?

चीज़ों के ज़रिए उपासना करना—परमेश्‍वर का क्या नज़रिया है?

बौद्ध, हिंदू, इसलाम, यहूदी, रोमन कैथोलिक और पूर्वी ऑर्थोडॉक्स धर्मों में प्रार्थना करते वक्‍त अलग-अलग चीज़ों का इस्तेमाल करना बहुत आम है। इसलिए करीब-करीब सभी देशों में लाखों लोग मानते हैं कि इनकी मदद से वे ईश्‍वर से करीब जाते हैं, उसकी मंज़ूरी या आशीष पाते हैं। मगर इस बारे में बाइबल क्या सिखाती है?

प्रार्थना में अलग-अलग चीज़ों का इस्तेमाल सदियों पहले शुरू हुआ। मिसाल के लिए, पुराने ज़माने में जहाँ नीनवे शहर हुआ करता था, वहाँ खुदाई करने पर पुरातत्वज्ञानियों को “पंखोवाली स्त्रियों की दो मूर्तियाँ मिलीं, जो एक पवित्र पेड़ के समाने खड़े होकर पूजा कर रही हैं। उनके . . . बाँए [हाथ] में एक फूलों का हार या रोज़री (माला) है।”—द कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया।

रोज़री किस काम आती है? इनसाइक्लोपीडिया इसका जवाब देती है: “जब एक प्रार्थना को जपने के साथ-साथ उसकी गिनती याद रखनी होती है, तो उसे उँगलियों पर गिनने के बजाय किसी चीज़ की मदद से गिनना ज़्यादा आसान होता है।”

जब प्रार्थना को कई बार जपना होता है, तो प्रार्थना-चक्के का इस्तेमाल, रोज़री से ज़्यादा आसान होता है। चक्के को चाहे हाथ से घुमाया जाए या फिर हवा, पानी या बिजली की मदद से, जब यह एक पूरा चक्कर काटता है, तो उसे एक प्रार्थना माना जाता है। प्रार्थना-चक्के में अकसर मंत्र यानी रहस्यमय श्‍लोक होते हैं। आइए देखें कि परमेश्‍वर का ऐसी चीज़ों के बारे में क्या नज़रिया है।

‘एक ही बात बार-बार न दोहराओ’

लाखों गैर-मसीही, यीशु को परमेश्‍वर का नबी मानते हैं। यीशु ने बार-बार दोहराए जानेवाली प्रार्थनाओं के बारे में सिरजनहार का नज़रिया यूँ बताया: “प्रार्थना करते समय अन्यजातियों की नाईं बक बक न करो [‘एक ही बात बार-बार न दोहराओ,’ NW]; क्योंकि वे समझते हैं कि उनके बहुत बोलने से उन की सुनी जाएगी।” *मत्ती 6:7.

अब ज़रा सोचिए, अगर परमेश्‍वर को प्रार्थना में ‘एक ही बात बार-बार दोहराना’ मंज़ूर नहीं, तो क्या किसी चीज़ का इस्तेमाल करके रटी-रटायी प्रार्थना करना उसे मंज़ूर होगा? बाइबल में ऐसा एक भी हवाला नहीं, जिसमें परमेश्‍वर के किसी सच्चे सेवक ने रोज़री, प्रार्थना-चक्का या ऐसी ही किसी दूसरी चीज़ का इस्तेमाल करके प्रार्थना की हो। इसलिए अगर हम प्रार्थना का असल मतलब और वजह जान लें, तो हम समझ पाएँगे कि उन सेवकों ने ऐसी चीज़ें क्यों इस्तेमाल नहीं कीं।

प्रार्थना, जो परमेश्‍वर को भाती है

यीशु ने आदर्श प्रार्थना में परमेश्‍वर को “हे हमारे पिता” कहा। जी हाँ, हमारा सिरजनहार कोई अनजान शक्‍ति या रहस्यमय शख्स नहीं, जिसे मंत्र जपकर या रस्मों-रिवाज़ों के ज़रिए खुश किया जाए। वह हमसे प्रेम करनेवाला पिता है और वह चाहता है कि हम उसे अपना पिता मानकर उससे प्रेम करें। यीशु ने कहा था: “मैं पिता से प्रेम रखता हूं।” (यूहन्‍ना 14:31) उसी तरह, पुराने ज़माने के एक नबी ने कहा: “हे यहोवा, तू हमारा पिता है।”—यशायाह 64:8.

हम स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के करीब कैसे जा सकते हैं? (याकूब 4:8) दो इंसानों के बीच का रिश्‍ता तभी मज़बूत होता है, जब वे एक-दूसरे से अपने दिल की बात कहते हैं। परमेश्‍वर के साथ हमारे रिश्‍ते के बारे में भी यह सच है। परमेश्‍वर अपने वचन बाइबल के ज़रिए हमसे “बात” करता है। बाइबल में उसने अपने काम, अपनी शख्सियत और अपना मकसद साफ ज़ाहिर किया है। (2 तीमुथियुस 3:16) और जब हम पूरी श्रद्धा से परमेश्‍वर से प्रार्थना करते हैं, तो हम उससे बात कर रहे होते हैं। इसलिए प्रार्थना पूरे दिल से की जानी चाहिए और यह एक ढर्रा नहीं होनी चाहिए और ना ही रटी-रटायी होनी चाहिए।

ज़रा सोचिए: किसी खुशहाल परिवार में एक बच्चा अपने माता-पिता से किस तरह बात करेगा? क्या वह अपने शब्दों या बात को बार-बार दोहराएगा और किसी चीज़ की मदद से उसे गिनेगा कि उसने कितनी बार वह बात कही है? नहीं। इसके बजाय, वह बड़े अदब से और सोच-समझकर अपने दिल की बात बताएगा।

परमेश्‍वर से हमारी प्रार्थनाएँ भी बिलकुल इसी तरह होनी चाहिए। हम अपनी हर चिंता परमेश्‍वर को साफ-साफ बता सकते हैं। फिलिप्पियों 4:6,7 कहता है: ‘किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्‍वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं। तब परमेश्‍वर की शान्ति तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को सुरक्षित रखेगी।’ यह ज़ाहिर-सी बात है कि जब हमें कोई चिंता सताती है, तो हम उसके बारे में बार-बार प्रार्थना करते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम कोई जाप करते या सिर्फ शब्दों को बार-बार दोहराते हैं।—मत्ती 7:7-11.

बाइबल में ऐसी कई प्रार्थनाएँ दर्ज़ हैं, जिन्हें परमेश्‍वर ने मंज़ूर किया था। इनमें भजन और यीशु की प्रार्थनाएँ भी शामिल हैं। * (भजन 17 और 86 उपरिलेख; लूका 10:21,22; 22:40-44) यीशु की एक प्रार्थना यूहन्‍ना की किताब के 17वें अध्याय में दर्ज़ है। कुछ समय निकालकर उसे पढ़िए। गौर कीजिए कि यीशु ने कैसे परमेश्‍वर के सामने अपने दिल का सारा हाल बयान किया था। यह भी गौर कीजिए कि उसकी प्रार्थना में ज़रा भी स्वार्थ नहीं था। इसके बजाय, उसकी प्रार्थना में चेलों के लिए उसका सच्चा प्यार साफ झलकता है। उसने कहा: “हे पवित्र पिता, . . . तू उन्हें उस दुष्ट [शैतान] से बचाए रख।”—यूहन्‍ना 17:11,15.

क्या आपको यीशु की प्रार्थना से ऐसा लगा कि वह शब्दों को बस दोहराए जा रहा था और परमेश्‍वर के लिए उसके दिल में कोई जज़बात नहीं थे? बिलकुल नहीं! उसने प्रार्थना के सिलसिले में हमारे लिए क्या ही बेहतरीन मिसाल रखी! जी हाँ, सच्चे परमेश्‍वर के करीब आनेवालों के लिए ज़रूरी है कि वे परमेश्‍वर के बारे में सही-सही ज्ञान लें और उसे एक असल शख्स के तौर पर जानें। फिर उस ज्ञान के आधार पर उनका प्यार उन्हें उकसाएगा कि वे ऐसे हर रीति-रिवाज़ को छोड़ दें, जिससे परमेश्‍वर नाखुश होता है। जो यहोवा परमेश्‍वर को खुश करने की इच्छा रखते हैं, उनसे परमेश्‍वर कहता है: “[मैं] तुम्हारा पिता हूंगा, और तुम मेरे बेटे और बेटियां होगे।”—2 कुरिन्थियों 6:17,18. (g 11/08)

[फुटनोट]

^ यह कहने के बाद, यीशु ने एक आर्दश प्रार्थना सिखायी। उसमें यीशु ने यह नहीं कहा कि “सो तुम यही प्रार्थना किया करो।” अगर वह ऐसा कहता तो वह खुद अपनी ही बात काट रहा होता। इसके बजाय, उसने कहा: “सो तुम इस रीति से प्रार्थना किया करो।” (मत्ती 6:9-13) यीशु क्या सिखाना चाहता था? जैसा कि आदर्श प्रार्थना से ज़ाहिर है, वह चाहता था कि हम रुपए-पैसे, कपड़े-लत्ते से ज़्यादा आध्यात्मिक बातों को ज़िंदगी में पहली जगह दें।

^ हालाँकि परमेश्‍वर की महिमा में अलग-अलग मौकों पर भजन गाए गए, लेकिन उन्हें मंत्रों की तरह बार-बार नहीं दोहराया गया। और ना ही किसी रीति-रिवाज़ में रोज़री या प्रार्थना-चक्के का इस्तेमाल करके उसे जपा गया।

क्या आपने कभी सोचा है?

◼ यीशु ने एक ही बात बार-बार न दोहराने की जो सलाह दी, उससे हम रोज़री या प्रार्थना-चक्के के इस्तेमाल के बारे में क्या सीखते हैं?—मत्ती 6:7.

◼ हमारी प्रार्थनाएँ परमेश्‍वर के बारे में हमारे नज़रिए को कैसे ज़ाहिर करती हैं?—यशायाह 64:8.

◼ अगर हम झूठे रीति-रिवाज़ों को ठुकरा दें, तो परमेश्‍वर हमारे बारे में कैसा महसूस करेगा?—2 कुरिन्थियों 6:17,18.