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अपने भाई-बहनों के साथ पटरी कैसे बिठाऊँ?

अपने भाई-बहनों के साथ पटरी कैसे बिठाऊँ?

नौजवान पूछते हैं

अपने भाई-बहनों के साथ पटरी कैसे बिठाऊँ?

निशान लगाइए कि आपका अपने भाई-बहनों के साथ कैसा रिश्‍ता है।

_____ जिगरी दोस्त हैं

_____ अकसर पटती है

_____ एक-दूसरे को बरदाश्‍त करते हैं

_____ हर वक्‍त लड़ते रहते हैं

कुछ भाई-बहन एक-दूसरे के बहुत करीब होते हैं। उदाहरण के लिए, 19 साल की फरीदा कहती है, “मेरी 16 साल की बहन रेहाना, मेरे जिगरी दोस्तों में से एक है।” * और अपने 20 साल के भाई आर्य के बारे में 17 साल की काया कहती है: “हम दोनों की खूब पटती है। हम कभी नहीं लड़ते।”

दूसरी तरफ कुछ सीमा और रीमा की तरह होते हैं। सीमा कहती है, “हम हर छोटी-से-छोटी बात पर लड़ते हैं।” या हो सकता है कि आप 12 साल की अमिता की तरह महसूस करते हों, जो अपने 14 साल के भाई आयुष के बारे में कहती है, “उसे देखकर मेरा पारा चढ़ जाता है। वह मेरे कमरे में चला आता है और बिना पूछे मेरी चीज़ें ‘ले’ जाता है। उसे ज़रा भी तमीज़ नहीं।”

इसी तरह क्या अपने भाई-बहनों की हरकतों से आपका भी पारा चढ़ जाता है? बेशक घर में शांति और व्यवस्था बनाए रखना माता-पिता की ज़िम्मेदारी है। लेकिन आज नहीं तो कल आपको सीखना ही होगा कि दूसरों के साथ कैसे तालमेल बिठाएँ। अच्छा होगा यह आप घर पर ही सीख लें।

सोचिए कि आप अपने भाई-बहनों से खासकर किन मामलों पर लड़ते हैं? अब नीचे दी गयी सूची देखिए और जो मामला आप पर लागू होता है, उसके आगे ✔ का निशान लगाइए। या जिस बात पर आप आग-बबूला हो जाते हैं, उसे लिखिए।

आपकी चीज़ें। मेरे भाई-बहन बिना पूछे मेरी चीज़ें “ले” जाते हैं।

अलग स्वभाव। मेरे भाई-बहन स्वार्थी हैं, या बिना सोचे-समझे काम करते हैं, या मुझे अपनी उँगलियों पर नचाना चाहते हैं।

एकांत। मेरे भाई-बहन बिना दरवाज़ा खटखटाए कमरे में चले आते हैं या मेरी इजाज़त के बिना मेरे इ-मेल या मोबाइल पर संदेश पढ़ते हैं।

दूसरी वजह। ....

अगर आपके भाई-बहन हर वक्‍त हुक्म चलाते हैं या आपको कुछ देर के लिए भी अकेला नहीं छोड़ते तो उनकी इन हरकतों से आपको चिढ़ हो सकती है और ऐसे में पारा चढ़ना वाजिब है। लेकिन बाइबल का एक नीतिवचन कहता है, “जैसे . . . नाक के मरोड़ने से लोहू निकलता है, वैसे ही क्रोध के भड़काने से झगड़ा उत्पन्‍न होता है।” (नीतिवचन 30:33) इसलिए मन-ही-मन कुढ़ते रहने से हो सकता है कि आप गुस्से में बरस पड़ें। और यह ऐसा होगा जैसा कि नीतिवचन में कहा गया है कि नाक के मरोड़ने से खून निकलता है। और तब बात और बिगड़ सकती है। (नीतिवचन 26:21) तो आप कैसे अपनी झुँझलाहट पर काबू पा सकते हैं, ताकि बहसबाज़ी की नौबत ही न आए? पहला कदम है, झगड़े की असल वजह जानना।

घटना या असल वजह?

भाई-बहनों के बीच की समस्याएँ मुँहासों की तरह होती हैं। मुँहासों का बाहरी लक्षण है, एक भद्दी फुँसी, जो असल में अंदर संक्रमण की वजह से होती है। उसी तरह भाई-बहनों में होनेवाले लड़ाई-झगड़े या तकरार सिर्फ बाहरी लक्षण हैं, लेकिन असल वजह कुछ और होती है।

आप मुँहासों को फोड़कर उनसे निजात पाने की कोशिश कर सकते हैं। लेकिन इस तरह आप सिर्फ ऊपरी इलाज कर रहे होंगे और हो सकता है इससे आपके चेहरे पर दाग पड़ जाएँ या संक्रमण और फैल जाए। बेहतर यही होगा कि आप संक्रमण को दूर करने की कोशिश करें ताकि और मुँहासे न निकलें। भाई-बहनों के बीच की समस्याएँ भी कुछ ऐसी ही होती हैं। सिर्फ उस घटना को मत देखिए जिसकी वजह से झगड़ा शुरू हुआ बल्कि झगड़े की असल वजह जानने की कोशिश कीजिए। तब आप बुद्धिमान राजा सुलैमान की इस सलाह को भी लागू कर पाएँगे: “जो मनुष्य बुद्धि से चलता है वह विलम्ब से क्रोध करता है।”—नीतिवचन 19:11.

उदाहरण के लिए, अमिता ने अपने भाई आयुष के बारे में कहा, “वह मेरे कमरे में घुसकर बिना पूछे मेरी चीज़ें ‘ले’ जाता है।” यह एक घटना है। लेकिन आपके हिसाब से इसकी असल वजह क्या हो सकती है? शायद यह मामला आदर दिखाने से जुड़ा हो। *

अमिता चाहे तो इस समस्या से निपटने के लिए आयुष से कह सकती है कि आगे से तुम कभी मेरे कमरे में कदम मत रखना और न ही मेरी चीज़ों को हाथ लगाना। लेकिन इससे वह सिर्फ बाहरी लक्षण दूर कर पाएगी और हो सकता है झगड़ा और बढ़ जाए। लेकिन अगर अमिता, आयुष को समझाए कि आयुष को बिना खटखटाए क्यों उसके कमरे में नहीं आना चाहिए और बिना पूछे उसकी चीज़ें नहीं लेनी चाहिए तो बेशक उनके रिश्‍ते में सुधार आ सकता है।

झगड़ों को निपटाना या उनसे बचना सीखिए

आपके और आपके भाई-बहन के बीच समस्या की असल वजह पहचानना एक शुरूआत है। तो फिर आप झगड़े को पूरी तरह मिटाने और दोबारा झगड़े न हों, इसके लिए क्या कर सकते हैं? नीचे दी गयी छः बातें अमल में लाकर देखिए।

1. मिलकर कुछ नियम बनाइए। राजा सुलैमान ने लिखा: “बिना सम्मति [या बातचीत] की कल्पनाएं निष्फल हुआ करती हैं।” (नीतिवचन 15:22) आपकी योजनाएँ निष्फल न हों, इसके लिए एक बार फिर गौर कीजिए कि किस बात पर आप भाई-बहनों में झगड़ा होता है और आपने किस मुद्दे पर निशान लगाया था। देखिए कि क्या आप दोनों मिलकर उस मामले पर कुछ नियम बना सकते हैं। ऐसे नियम जिन पर दोनों राज़ी हों और जो समस्या की असल वजह दूर करें। उदाहरण के लिए, अगर आपमें चीज़ों को लेकर तू-तू-मैं-मैं होती है तो पहला नियम हो सकता है: “दूसरे की चीज़ लेने से पहले हमेशा इजाज़त लें।” दूसरा नियम हो सकता है: “भाई या बहन को यह कहने का हक है, ‘नहीं, तुम मेरी वह चीज़ नहीं ले सकते।’” नियम बनाते वक्‍त यीशु की इस आज्ञा को ज़रूर याद रखिए: “इसलिए जो कुछ तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो।” (मत्ती 7:12) इस सिद्धांत को ध्यान में रखने से आप ऐसे नियम बना पाएँगे, जिन्हें मानना आपके लिए, साथ ही आपके भाई-बहनों के लिए आसान होगा। फिर अपने माता-पिता को इस बारे में बताइए ताकि वे भी आपके बनाए नियमों से सहमत हो सकें।—इफिसियों 6:1.

2. खुद भी नियमों का पालन कीजिए। प्रेषित पौलुस ने लिखा: “तू जो दूसरे को सिखाता है, क्या खुद को नहीं सिखाता? क्या तू जो प्रचार करता है कि ‘चोरी न करना,’ खुद चोरी करता है?” (रोमियों 2:21) आप इस सिद्धांत को कैसे लागू कर सकते हैं? जैसे, अगर आप चाहते हैं कि आपका भाई या बहन बिना खटखटाए आपके कमरे में न आए, तो आपको भी उसके कमरे में जाने से पहले दरवाज़ा खटखटाना चाहिए या उसका कोई ई-मेल या फोन पर संदेश पढ़ने से पहले उसकी इजाज़त लेनी चाहिए।

3. छोटी-छोटी बातों का बुरा मत मानिए। यह सलाह अच्छी क्यों है? क्योंकि जैसा कि बाइबल का एक नीतिवचन कहता है, “केवल मूर्ख ही जल्दी क्रोधित होते और मन में मलाल रखते हैं।” (सभोपदेशक 7:9, कॉन्टेम्प्ररी इंग्लिश वर्शन) अगर आप छोटी-छोटी बात पर बुरा मानेंगे तो आपका जीना दूभर हो जाएगा। आपके भाई-बहन ज़रूर ऐसा कहेंगे या करेंगे जिससे आपका पारा चढ़ सकता है। लेकिन खुद से पूछिए, ‘क्या मैं भी कभी-कभी उनके साथ कुछ ऐसे ही पेश नहीं आता?’ (मत्ती 7:1-5) जिया कहती है, “जब मैं 13 साल की थी, तब मुझे लगता था कि मेरी राय सबसे ज़्यादा मायने रखती है और सबको मेरी बात माननी ही चाहिए। अब मेरी छोटी बहन उस दौर से गुज़र रही है। इसलिए मैं कोशिश करती हूँ कि मैं उसकी बातों को दिल से न लगाऊँ।”

4. माफ कीजिए और भूल जाइए। गंभीर समस्याओं के बारे में बात करके उसे सुलझाना ज़रूरी होता है। लेकिन क्या भाई-बहनों की हर गलती के लिए उनके साथ बहस करना ठीक होगा? जब आप ‘अपराध को भुलाने’ के लिए तैयार रहते हैं तो इससे यहोवा परमेश्‍वर बहुत खुश होता है। (नीतिवचन 19:11) उन्‍नीस साल की अंकिता कहती है, “मेरी बहन परिधि और मैं अकसर अपनी समस्याएँ सुलझा लेते हैं। हम दोनों ही तुरंत माफी माँग लेते हैं और फिर समझाते हैं कि हमारे हिसाब से झगड़े की असल वजह क्या थी। कभी-कभी मैं समस्या के बारे में उसी दिन बात नहीं करती। और देखती हूँ कि अगले दिन माफ करना और भूल जाना ज़्यादा आसान होता है। मुझे समस्या के बारे में बात करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती।”

5. माता-पिता की मदद लीजिए। अगर आप अपने भाई या बहन के साथ मिलकर कोई ज़रूरी मसला सुलझा नहीं पाते तब आपके माता-पिता शांति बनाने में आपकी मदद कर सकते हैं। (रोमियों 14:19) लेकिन याद रखिए कि माता-पिता को बीच में लाए बिना अगर आप आपस में समस्या दूर कर लेते हैं तो यह समझदारी की निशानी होगी।

6. अपने भाई-बहनों के अच्छे गुणों की कदर कीजिए। आपके भाई-बहनों में कुछ ऐसे गुण ज़रूर होंगे जिन्हें आप बहुत पसंद करते हों। लिखिए कि आपको अपने हर भाई-बहन का कौन-सा गुण बहुत अच्छा लगता है।

नाम मुझे पसंद है

..... .....

हमेशा अपने भाई-बहनों की नुक्‍ताचीनी करने के बजाय क्यों न मौका ढूँढ़कर उन्हें बताएँ कि आपको उनकी कौन-सी बात अच्छी लगती है?—भजन 130:3; नीतिवचन 15:23.

जीवन का सच: बाहर की दुनिया में कदम रखने पर कभी-कभी आपका सामना ऐसे लोगों से हो सकता है जो आपको फूटी आँख न सुहाएँ, जैसे कि आपके साथ काम करनेवाले और दूसरे बेरुखे और मतलबी लोग या दूसरों की भावनाओं का बिलकुल खयाल न रखनेवाले। घर एक ऐसी जगह है, जहाँ आप शांति से ऐसी मुश्‍किलों से निपटाना सीख सकते हैं। अगर आपको अपने किसी भाई या बहन के साथ पटरी बिठाना मुश्‍किल लगता है, तो भड़कने के बजाय सोचिए कि उसकी वजह से आप ज़िंदगी के कुछ अनमोल सबक सीख रहे हैं!

बाइबल मानती है कि ज़रूरी नहीं कि आपके भाई-बहन ही आपके सबसे करीबी दोस्त हों। (नीतिवचन 18:24) लेकिन अगर आप “एक-दूसरे की सहते” रहें, तब भी जब उनसे “शिकायत की कोई [वाजिब] वजह” हो, तो आप अपने भाई-बहनों के साथ दोस्ती मज़बूत कर सकेंगे। (कुलुस्सियों 3:13) अगर आप ऐसा करेंगे तो आपको अपने भाई-बहनों पर कम गुस्सा आएगा। और शायद आप भी उन्हें कम गुस्सा दिलाएँ! (g10-E 08)

“नौजवान पूछते हैं” के और भी लेख, वेब साइट www.watchtower.org/ype पर उपलब्ध हैं

[फुटनोट]

^ कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

^ ज़्यादा मदद के लिए नीचे दिया बक्स देखिए।

इस बारे में सोचिए

● घटना और उसकी असल वजह के बीच फर्क जानना क्यों ज़रूरी है?

● ऊपर दी छः बातों में से किस पर आपको सबसे ज़्यादा काम करने की ज़रूरत है?

[पेज 27 पर बक्स]

असल वजह पहचानिए

क्या आप भाई-बहनों के झगड़ों की असल वजह पहचानने में और कुशल बनना चाहते हैं? अगर हाँ, तो यीशु का वह दृष्टांत पढ़िए जिसमें उसने एक ऐसे बेटे के बारे में बताया जो घर छोड़कर चला जाता है और अपनी सारी संपत्ति उड़ा देता है।—लूका 15:11-32.

गौर कीजिए कि छोटे भाई के घर लौटने पर बड़ा भाई कैसा रवैया दिखाता है। फिर नीचे दिए सवालों के जवाब दीजिए:

किस घटना से बड़ा भाई इतना भड़क उठा?

आपके मुताबिक भड़कने की असल वजह क्या थी?

पिता ने किस तरह समस्या को सुलझाने की कोशिश की?

समस्या को सुलझाने के लिए बड़े भाई को क्या करने की ज़रूरत थी?

अब हाल में अपने भाई या बहन के साथ हुए झगड़े के बारे में सोचिए। फिर नीचे दिए सवालों के आगे अपने जवाब लिखिए।

झगड़ा किस घटना से शुरू हुआ?

आपके हिसाब से झगड़े की असल वजह क्या हो सकती है?

इस झगड़े को निपटाने और आगे इस तरह के झगड़े न हों, इसके लिए आप दोनों मिलकर कौन-से नियम बना सकते हैं?

[पेज 28, 29 पर बक्स/तसवीरें]

आपके हमउम्र क्या कहते हैं

“मैं बाकी की ज़िंदगी अपनी बहनों की सहेली बनकर जीना चाहती हूँ, तो क्यों न मैं अभी से ऐसा करूँ।”

“हम साथ मिलकर काम करते हैं और इससे हम एक-दूसरे के करीब आ गए हैं। अब हममें पहले के जितना झगड़ा नहीं होता।”

“कुछ मामलों में हममें ज़मीन-आसमान का फर्क है, फिर भी मेरी बहन हज़ारों में एक है! मैं उससे बहुत प्यार करती हूँ!”

“अगर मेरे भाई-बहन न होते तो मेरी ज़िंदगी में कोई यादगार पल ही न होते। जिनके भाई-बहन हैं, उनसे मैं कहना चाहूँगी कि ‘उन्हें अनमोल समझिए!’”

[तसवीरें]

टिया

बियांग्का

समैन्था

मैरलिन

[पेज 27 पर तसवीर]

भाई-बहनों के बीच की समस्याएँ मुँहासों की तरह होती हैं। इनसे राहत पाने के लिए उनका सिर्फ ऊपरी इलाज करने से काम नहीं बनेगा, आपको उनकी असल वजह दूर करनी होगी